बाल कविता

मां का दिल था हर्षाया

दिन भर खेलता खूब मुरारी,
कभी न पढ़ता-लिखता था,
इधर-उधर घूमा करता वह,
काम न कोई करता था.

एक बार मां उसकी बोली,
”आज नहीं कुछ खाने को,
काम करो और पैसे लाओ,
तभी मिलेगा खाने को.”

”अच्छा मां, मैं काम करूंगा”,
कहकर चला गया बाहर,
खेतों में किसान को देखा,
उससे काम मांगा जाकर.

दिन भर काम किया खेतों में,
शाम को मिले उसे पैसे,
खेलता-खेलता घर को आया,
राह में गिर गए सब पैसे.

मां ने कहा, ”मुरारी तुम कल,
जो भी मिले, जेब में लाना,
फिर किसान के पास काम कर,
मिला दूध अब घर को जाना.

दूध जेब में डाल चला वह,
घर पहुंचा तो दूध कहां?
अगले दिन उसे बाल्टी देकर,
मां बोली, ”इसमें लाना.”

शाम हुई तो उस किसान ने,
मुर्गी दे दी उसको एक,
मुर्गी को तब रख बाल्टी में,
घर को चला वह बालक नेक.

बाल्टी खाली देख मां बोली,
”अब तो पैर बांधकर लाना.”
चला मुरारी यही सोचकर,
अब न पड़ेगा फिर पछताना.

शाम हुई तो उस किसान ने,
गाय का बछड़ा थमा दिया,
पैर बांधकर उस बछड़े के,
संभल-संभलकर चल दिया.

रास्ते में इक छोटी लड़की,
उसे देखकर खूब हंसी,
उसको हंसता देख खुशी से,
माता-पिता को मिली खुशी.

बुला मुरारी को वे बोले,
”तुमने अच्छा काम किया,
यह तो हंसती नहीं कभी भी,
तुमने इसको हंसा दिया”.

फल और पैसे दिए उन्होंने,
खुश हो वह घर को आया,
फल, पैसे और बछड़ा पाकर,
मां का दिल था हर्षाया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “मां का दिल था हर्षाया

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    lila bahan , maa ki baat manne se khushi to hoti hi hai .

  • लीला तिवानी

    मां की बात मानने से मां का दिल तो हर्षाता ही है, संतान को भी मां के आशीर्वाद से सकारात्मक परिणाम हासिल होता है.

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