सामाजिक

पुस्तक समीक्षा – दंत कथाओ का न तो कोई अंत होता है न ही कोई औचित्य 

लेखक श्री बृज मोहन भार्गव की पुस्तक ‘डाकोत ब्राह्मण कुलीन वंश परंपरा’ कई सत्य उजागार करती हैं। पुस्तक में डाकोत के रहस्य से लेकर उसके इतिहास और आधुनिक समाज में उसकी यथार्थ स्थिति का सटीक रेखांकन किया गया है। पुस्तक पठन के बाद डाकोत ब्राह्मण जाति समाज के प्रति लेखक श्री बृज मोहन भार्गव की चिंता जायज लगती है। जिस जाति को क्षत्रिय दर्जा मिलना चाहिए था, वह राजस्थान जैसे राज्य में अन्य पिछडा वर्ग और जाति च्युत नियमों के अतिरिक्त भार के तले दम तोड़ रही है। केवल किंवदितयों के आधार पर एक जाति से उसका गौरव छिनना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। आज एक बार पुनः इस जाति की व्याख्या और इतिहास को दृष्टिपात करनी आवश्यकता है। जैसा कि पुस्तक में लेखक श्री बृज मोहन भार्गव ने बताया है कि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र महऋषि भृगु ने कठिन तपस्या करके ब्रह्म ज्ञान प्राप्त किया। वे ज्योतिष, आयुर्वेद, शिल्प विज्ञान, दर्शन शास्त्र आदि विषयों के उच्च कोटि के ज्ञाता रहे, उनके रचित कुछ ग्रन्थ भृगु स्मृति (आधुनिक मनु स्मृति), भृगु संहिता (ज्योतिष), भृगु संहिता (शिल्प), भृगु शुत्र,  भृगु उपनिषद, भृगु गीता आदि-आदि विश्व विख्यात है। बेशक भृगु एक महान ज्योतिषी व त्रिकालदर्शी थे तथा अपनी ज्योतिष विद्या के कारण वे वैदिक काल से ही प्रसिद्ध है। उनके द्वारा लिखी गई भृगु संहिता आज भी सभी ब्राह्मण वर्ग के लिए आजीविका का एक मात्र साधन है, इसमें कोई नाममात्र भी सन्देह नहीं। महृषि भृगु के दो पुत्रों का प्रमुख स्थान रहा है, जिनके नाम भृगु  की पत्नी दिव्या के पुत्र शुक्र (उशना), काव्य जो अशुरों के गुरु शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए तथा कठिन तपस्या करके देवो के देव महादेव शिव भोले से  संजीवनी विद्या हासिल करके सफलता हासिल कि दूसरे पुत्र च्यवन जिनकी माता का नाम पुलोमी था, वैसे भृगु के सात पुत्र होने का उल्लेख मिलता है। षंड के पुत्र महर्षि शंकराचार्य हुए। शंकरचार्य के पुत्र महर्षि शांडिल्य हुए, जिन्होंने शांडिल्य स्मृति ग्रन्थ की रचना की। शांडिल्य के पुत्र डामराचार्य हुए। जिन्होंने डामर संहिता ग्रन्थ की रचना की। ड़क मुनि (डंकनाथ) ड़क ऋषि इन्ही के नामों से जाना जाता है। महर्षि डामराचार्य (डक ऋषि) के पांच पुत्र हुए। जिनमें (सुषेण) जो की रावण के दरबार में चिकित्सक थे तथा राम-रावण युद्ध में राम के भ्राता लछमन को मूर्छित होने पर उनका इलाज किया था। भृगुवंशी (डक) ऋषि से ही डकोत ब्राह्मणो का वट-वृक्ष आगे बढ़ा। ड़क ऋषि एक ब्राह्मण व उच्च कोटि के ज्योतिषी थे। उनकी पत्नी के बारे में भी कई प्रकार की दंत कथाएँ (किवदंतियां) पढ़ने को मिलती है। उनकी पत्नी (भड्डरी ) भड़ली के बारे में कहा जाता है कि वह एक शूद्र परिवार की बेटी थी, परन्तु यह कथन किसी हद तक मनघडंत लगता है। क्योकि डक ऋषि एक उच्च कोटी के ब्राह्मण माने जाते है। उनकी पत्नी (भड्डरी) के बारे में लिखा है की वह राजा कश्मीर की लड़की थी। भड्डरी एक विद्वान लड़की थी। भड्डरी की शर्त थी की जो व्यक्ति उसके प्रश्नों का उत्तर देगा वह उसी के साथ शादी करेगी। स्वयम्बर में महर्षि डक ने उसके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया और भड्डरी ने स्वयम्बर में महर्षि ड़क को अपना पति चुना और इस प्रकार (भड्डरी) को महर्षि डक की पत्नी कहलाने का अधिकार मिला। किवदंतियां, दंत कथाएँ कुछ भी हो, परन्तु यह तो शोध कर्ता मानते है की (डक ऋषि) एक ब्राह्मण और महा विद्वान थे। उनकी पत्नी (भड्डरी) भी विद्वान थी। जिसने स्वयम्बर में डक ऋषि को अपना पति चुना। क्योकि कहा जाता है की पति-पत्नी का जोड़ा ईश्वर ऊपर से ही तय करके भेजता है। पुस्तक में यही बताया गया कि हमें किसी जाति समाज के प्रति दंत कथाओं के आधार पर धारणा न बनाकर सत्य की जड़ तक पहुंचाना चाहिए। क्योंकि दंत कथाओ का न तो कोई अंत होता है न ही कोई औचित्य।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com