लघुकथा

बेटी का बोझ

शादी हुए अभी एक साल ही हुआ था की उमा को गर्भ ठहर गया दोनों पति पत्नी और सास ससुर बहुत खुश थे | लेकिन आज जब सौरभ उमा के चेकअप के बाद अस्पताल से घर आया तो उसका चेहरा उतरा हुआ था उसकी माँ ने पुछा क्या है तो वो अपनी मां के साथ दुसरे कमरे में चला गया|

थोड़ी देर बाद उसकी मां आई और हंसते हुए यहाँ वहां की बातें करने लगी उमा को कुछ समझ नही आया | दुसरे दिन सौरभ की मां उमा को चेकअप के लिए अस्पताल ले गयी | डॉ. ने चेकअप किया और दवा देकर उमा को वहीं थोड़ी देर आराम करने के लिए कहा लगभग एक घंटे बाद उमा की आँखें खुली तो उसे थोडा सा दर्द का अनुभव हुआ वो सास के साथ घर चली आई| कुछ दिन बाद उसे मालूम पढ़ा की उसकी सास ने उसका बच्चा गिरा दिया है क्योंकि उसके गर्भ में एक लड़की थी और पूरा घर बच्चे का नही बल्कि लड़के के जन्म का इंतज़ार कर रहा था| उमा बहुत देर तक अपना पेट पकड़ कर रोती रही दूसरी बार भी ससुराल वालों ने ऐसा ही किया पहली बार तो बिना बताये ले गये थे लेकिन अब तो ज़बरदस्ती डरा धमका कर ले जाने लगे थे| वो गरीब घर की थी घर में बूढी मां के अलावा कोई था नही तो वो अपनी ये व्यथा किसे बताती वो स्वयं को अपने बच्चों की हत्यारिन समझने लगी थी| उसे स्वयं के व्यक्तित्व से घृणा आने लगी थी|

एक बार फिर वो समय आया जब वो गर्भवती हुई फिर से डॉ. के चेकअप का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन इस बार उमा ने सोच लिया था की वो अपने बच्चे को मरने नही देगी या तो फिर खुद भी उसके साथ ही मर जायेगी| जैसे ही ससुराल वालों को मालूम पढ़ा की इस बार भी पेट में बेटी है वो उसे अस्पताल ले गये उसे खाने के लिए टेबलेट दी गयी| लेकिन इस बार उसने टेबलेट खायी नही बल्कि टेबलेट खाने का नाटक कर सो गयी| सास और डॉ. के बीच गर्भ गिराने की बाते उसे साफ़ सुनाई दे रही थी | उमा वहां से किसी प्रकार चकमा देकर भाग निकली | दिशाहीन उमा कहां-कहां भटकती रही उसे याद नही लेकिन हाँ उसे इस बात की ख़ुशी थी की उसने अपनी बेटी के प्राण बचा लिए ये एक बात थी जो उसमे निरंतर साहस भरती रही | वो जैसे तैसे एक संस्था में पहुंची उस संस्था ने उसकी सारी व्यथा कथा सुनी| संस्था के मुखिया की सहायता से उमा ने  ससुराल वालों के खिलाफ पुलिस कार्यवाही शुरू करवाई| गर्भपात करने वाले उस डॉ. को भी पकड़ लिया गया| सास ससुर और उसका पति जो इस घिनौने काम में शामिल थे सभी को सजा मिली |आज लगभग 27 वर्ष हो गये | उमा उसी संस्था में संस्था प्रमुख है और अपने ही जैसी सताई हुई औरतों को बचाने उनमे जीने की इच्छा पैदा करने के नेक काम में लगी हुई है | उसकी वही बेटी जिसके प्राण बचाकर उमा भागी थी एक कामयाब पुलिस अधिकारी है और कन्या भ्रूण हत्या या स्त्रीयों पर घरेलु हिंसा करने वालों को सलाखों के पीछे डालती है |

 

 

 

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)