कविता

“नियति”

हमारे पूर्वजों ने,
बरगद का एक वृक्ष लगाया था,
आदर्शों के ऊँचे चबूतरे पर,
इसको सजाया था।
कुछ ही समय में,
यह देने लगा शीतल छाया,
परन्तु हमको,
यह फूटी आँख भी नही भाया।

इसकी शीतल छाया में,
हम ऐसे डूब गये,
कि जल्दी ही,
सारे सुखों से ऊब गये।

हमने काट डाली,
इसकी एक बड़ी साख,
और अपने नापाक इरादों से,
बना डाला एक पाक।

हम अब भी लगे हैं,
इस पेड़ को छाँटने में,
अपने पापी इरादों से,
लगे है दिलों को बाँटने में।
हे बूढ़े वृक्ष बरगद!

तूने हमारी हमेशा,
धूप और गर्मी से रक्षा की,
और हमने तेरी,
हर तरह से उपेक्षा की।

शायद तुझे आभास नही था,
परिवार में वृद्ध की,
यही होती गति है,
बूढ़े बरगद!
आज तेरी भी,
यही नियति है।।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है