सामाजिक

क्या हम राजनीतिक दलों के गुलाम हो गए हैं

श्रीभगवान के मन में यह सवाल बार बार आ रहा है कि क्या हम आजाद भारत के शिक्षित लोग सचमुच आजाद हैं। नहीं, मुझे तो नहीं लगता। आमतौर पर सभी को यह हर गांव समाज में देखने को मिलता है। जब भी कोई दो परिवारों में लड़ाई होती है, तब आम तौर पर कुछ सालों के बाद सुलह समझौता हो जाता है। लेकिन जब बात इज़्ज़त सम्मान से जुड़ा हुआ हो, और वह भी परिवार के मुखिया से तब सुलह होने की संभावना कम ही रहता है। हां उनके मरणोपरांत संभव हो सकता हैं, या उनका परिवार में कोई मान ना रहने पर यह सुलह का फैसला लिया जा सकता है। लेकिन यहां किसी परिवार की बात नहीं है। मायावती के साथ जो कुछ भी हुआ मुलायम सिंह के द्वारा यह मायावती का ही नहीं, दलित महिलाओं और देश की महिलाओं के सम्मान की बात थी। मायावती भी दुहाई देती रही है। क्या आज भारत देश की दलित महिलाओं का सम्मान गर्व से ऊंचा हो गया। क्या आज भारत की समस्त नारियों को सम्मान मिल गया। शायद नहीं। यह सब देख और सुनकर मेरे अंदर एक सवाल कौंध रहा है। क्या हम आज भी गुलाम नहीं है। मेरा मानना है कि हम आज भी गुलाम ही है।
अगर नहीं है तो कैसे कोई बताओं जरा मुझे। कई मित्र बैठे थे। उनमें मुन्ना अपने आप को बहुत बड़ा शिक्षित समझता था, सो उसने विश्लेषण करना शुरू किया, कहने लगा भाई श्रीभगवान तुम पढे लिखे तो हो नहीं, इसलिए तुम ऐसी बातें कर रहे हो नहीं तो जब हम अंग्रेजो के गुलाम थे। तब हमारे पूर्वजों को मारा पीटा गया, रहने की, खाने की, जमीन, जायदाद किसी प्रकार की आज़ादी नहीं थी। लेकिन आज हमारे देश में बोलने, रहने, खाने, पढ़ने- लिखने हर तरह की आज़ादी है। कोई तुमसे ज़बरदस्ती नहीं कर सकता है। हमारे देश में कानून व्यवस्था है। हमारे देश में सर्व धर्म समभाव हैं। लेकिन तुम्हें समझ में नहीं आ सकता। इसका कारण है तुम पढे लिखे नहीं हो। तुम जिसको चाहो वोट दो। अपने मन पसन्द नेता चुनने की भी आजादी है। तुम्हें अब और कैसी आज़ादी चाहिए। इसपर श्रीभगवान का माथा ठनका और वह बोला, अब तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो मैं बताऊं। सुनो- हम अपना नेता चुन सकते यह आज़ादी है। कैसे, अगर यह सत्य है तो अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के परिणाम कैसा था। हमने किसी व्यक्ति विशेष के कहने पर एक दूसरे को अपना कीमती वोट दिया। और वह भी किसको जिसने हमारी दलित नेता मायावती के सम्मान को ठेस पहुंचाने का काम किया था। अगर हम गुलाम नहीं है तो किसी नेता के कहने पर हम किसी दूसरे को अपना कीमती वोट कैसे दे सकते हैं। यह सुनकर मुन्ना भी दुखी हो गया। वह भी कहने लगा भाई यह बात तो तुम्हारी सत्य एवं चिंतन करने योग्य है।
एक बात तो तय हो गया आज कि कल भी हम गुलाम थे आज भी हम गुलाम है और आगे भी रहेंगे। आज के उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के परिणाम को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है। जिस प्रकार १९९५ में मायावती ने मुलायम सिंह यादव के ऊपर आरोप लगाया था। बहुजन समाज पार्टी के सभी कार्यकर्ता समर्थकों ने समाजवादी पार्टी को पानी पी पीकर कोषते रहे। वहीं आज भारतीय जनता पार्टी को पराजित करने के लिए लामबंद हुए। इस गठबंधन का परिणाम भी बेहद चौंकाने वाला आया है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मुखिया कार्यकर्ताओं में जोश देखने को मिला। यह सत्य है कि गठबंधन इसलिए ही होता है कि पार्टी को जीत हासिल हो। लेकिन गठबंधन विचारों पर होता है। तब जाकर कार्यकर्ता, समर्थक, उनको अपना मत देते हैं। लेकिन यहां तो विचारों के उलट रहने वाले, और हमारे दलित नेता की बेइज्जती करने वाले को ही समर्थन दिया गया है। आज मैं अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा हूं। आज मैं स्वतंत्र भारत का स्वतंत्र एवं शिक्षित इंसान कहने में शर्म महसूस कर रहा हूं।

संजय सिंह राजपूत
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संजय सिंह राजपूत

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