लघुकथा

टैटू

कॉन्स्टेबल गणेश धांगड़े ने सपने में भी नहीं सोचा था, कि एक टैटू की मदद से वे 24 साल बाद बिछड़ी मां से मिल सकेंगे, लेकिन सचमुच यह कमाल हो गया था.

1989 में धांगड़े, जो ठाणे के एक म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ते थे, ने अपने दोस्त के रिश्तेदार के घर मुंबई जाने के लिए स्कूल बंक किया था, लेकिन वह लोकल ट्रेन में बेतहाशा भीड़ होने के कारण अपने दोस्तों से बिछुड़ गए. इस बिछुड़न ने उन्हें क्या-क्या रंग दिखाए!

मुंबई में उन्हें खाना खाने के लिए कुछ समय तक भीख भी मांगनी पड़ी. बाद में उन्हें बेसहारा होने के कारण वर्ली के आनंद आश्रम में भेजा गया, जहां उन्होंने सातवीं क्लास तक पढ़ाई की. सातवीं के बाद उन्हें अनाथालय भेज दिया गया. इसके बाद वह ठाणे के संकेत विद्यालय और जूनियर स्कूल में 12वीं क्लास तक पढ़े. पढ़ाई में मेधावी होने के कारण उन्हें महाराष्ट्र सरकार से पढ़ाई में सहायता मुहैया कराई गई और एग्जाम देकर वह पुलिस में आ गए. कॉन्स्टेबल बनने पर भी उन्हें अपने परिवार को ढूंढने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. पहचान के लिए उनके पास एक टैटू था और स्मृति में था केवल एक दरगाह का नाम.

टैटू और दरगाह के नाम के कारण वे अपनी बिछुड़ी हुई मां और परिवार से मिल पाए. आज कॉन्स्टेबल गणेश धांगड़े की खुशी का कोई ठिकाना नहीं और उनकी मां की खुशी तो बस एक मां ही समझ सकती है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “टैटू

  • लीला तिवानी

    अपनी मां से बिछुड़ने के 24 साल बाद उनसे मिलने वाले कॉन्स्टेबल की कहानी बॉलीवुड फिल्मों के बॉक्स ऑफिस पर आजमाए गए फार्म्युले ‘लॉस्ट एंड फाउंड’ की जीती-जीगती मिसाल है। कांस्टेबल की कहानी पर मराठी फिल्म निर्देशक गिरीश मोहिते ने ‘लाल बत्ती’नाम से फिल्म बनाने का फैसला किया है। यह फिल्म इसी साल रिलीज होगी।

Comments are closed.