गीत/नवगीत

लोभ द्वेष का नित बढ़ता तम…

लोभ द्वेष का नित बढ़ता तम, पथ से कदम नही भटका दे।
इसीलिये अपने अंतस का, दीप जलाना सीख रहा हूँ ।।

सब कुछ पाने की चाहत भी, कारण दुख का एक बड़ा है।
भौतिकता की चकाचौंध में, दृष्टि पटल सिकुड़ा- सिकुड़ा है।।
मैं जीवन की चकाचौंध से, आँख बचाना सीख रहा हूँ…
इसीलिये अपने अंतस का, दीप जलाना सीख रहा हूँ…

खुद से मिले बिना ईश्वर से, मिलना कब सम्भव होता है।
लेकिन बहुत बाद में जाकर, हम को यह अनुभव होता है।।
इसीलिये मैं रब से पहले, खुद को पाना सीख रहा हूँ…
इसीलिये अपने अंतस का, दीप जलाना सीख रहा हूँ …

जो हम में ही विद्धमान है, उसको सारे ढूँढ़ रहे हैं।
मंदिर मस्जिद चर्चों में या, जा गुरुद्वारे ढूँढ़ रहे हैं।।
मुझमें उसके निहित अंश को, मीत बनाना सीख रहा हूँ…
इसीलिये अपने अंतस का, दीप जलाना सीख रहा हूँ…

जो इस दुनिया से पाया है, सब इक दिन खोना है हमको।
अंततः तो पंच तत्वों में, ही विलीन होना है हमको।।
मैं जिसका हूँ अंश उसी का, बस हो जाना सीख रहा हूँ…
इसीलिये अपने अंतस का, दीप जलाना सीख रहा हूँ…

सतीश बंसल
१६.०४.३०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.