गज़ल
किसी तूफान के पहले की चुप्पी हो जैसे
इस राख में अभी भी आग छुपी हो जैसे
तेरा चेहरा कुछ इस तरह धुआँ-धुआँ है कि
लबों पे आ के कोई बात रूकी हो जैसे
बात – बात पे यूँ मार न ताने मुझको
कोई फरियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे
तमाम गल्तियों के बाद भी यूँ अकड़ा है
पूरी दुनिया में एक वो ही सही हो जैसे
सामने हो फिर भी पा नहीं सकता तुमको
कोई दीवार दरम्यान खड़ी हो जैसे
इशारा कर रही है उसकी आँखों की रंगत
नदी अभी यहाँ से कोई बही हो जैसे
— भरत मल्होत्रा