कविता

तुम को ढूंढ़ा करती हैं

पुरे आठ पहर नज़रे
तुम को ढूंढ़ा करती हैं

किसी के आहट पे
तुम को ढूंढ़ा करती हैं

एहसास तो पास का होता है
पर नज़रे उदास होती है

तेरे बेरुखी आदतों ने
मुझे उदास कर रखा है

तुम दिख जाओ एक बार
इस चाह में
बार बार पलटा करता हूँ

फिर वही खालीपन
और वही ख़ामोशी
मुझे चिढ़ा जाती है

पुरे आठ पहर नज़रे
तुम को ढूंढ़ा करती है

रवि प्रभात

पुणे में एक आईटी कम्पनी में तकनीकी प्रमुख. Visit my site