कविता

गृहिणी

हां मैं सिर्फ एक हाउसवाइफ ही तो हूँ
समाज की नजरों में जिसका कोई वजूद नहीं ।

सपनों को आंखों में बसाए ,
ख़्वाबों को दिल में छिपाए
कब बड़ी हो जाती है लड़की
उम्र का पता ही नहीं लगता।

बांध दी जाती है एक खूंटे से ,
बिना उसकी मर्जी जाने
विदा हो जाती है उम्र से पहले
अपनी खुशियों का गला घोंटे ।

उम्मीदें होती हैं हजारों सबको
चाहे बड़े हों या छोटे ,
ओढ़कर शर्म का गहना
रहती है सपनों से आंख मींचे

आ जाते हैं गोद में जब फूल
भूल जाती है ख़्वाबों की abcd
बन जाता है मकसद सींचना ,
दुनिया को अपनी ख़्वाबों में समेटे ।

कहने को तो बेगार हूँ ,
सिर्फ आराम की तलबगार हूँ ।
उठता है दर्द पोर पोर में,
सहने है फिर भी तानों के कशीदे ।

चर्चे हैं आजकल बहुत मेरे ,
क्या गली घर और बगीचे ।
आराम ही आराम है जिंदगी में
देखो वो हैं अब जिम्मेदारियों से छूटे ।

काश सीखा होता दुनिया से ,
गप्प मारकर जिंदगी जीना ।
न होते अरमान फना हमारे
हम भी जी पाते झूठा मुखौटा लपेटे ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017