मुक्तक/दोहा

पर्वत के पीछे हुआ, ज्यों ज्यों अम्बर लाल

  1. पर्वत के पीछे हुआ, ज्यों ज्यों अम्बर लाल।
    पर्वत चाँदी हो गये, बादल हुए गुलाल।।

भोर सुन्दरी आ गयी, धर किरणों का वेष।
देखो लगी समेटने, निशा तमस के केश।।

छूट निशा की कैद से, पा प्रभात का संग।
श्यामल बादल पा गये, सौम्य केसरी रंग।।

वट वृक्षों के बीच से, छनती कोमल धूप।
जैसे नवदुल्हन बनी, नवयुवती का रूप।।

अँधियारे को चीर कर, निकला स्वर्ण प्रभात।
नवदुल्हन के नयन में, ठहरी अब तक रात।।

कैसे छुपता जो हुआ, पिया मिलन की रात।
नयन उनींदे कह रहे, बिन बोले हर बात।।

दिया किसी को शाम ने, मधुर मिलन पैगाम।
और किसी को दे गयी, आँसू ढलती शाम।।

जब नारी के रूप पर, चढ़ता है रति रंग।
जप-तप विश्वामित्र का, कर देती है भंग।।

बंसल जीवन बाँटता, यूँ ही जीवन रंग।
कभी भोर के संग तो, कभी शाम के संग।।

सतीश बंसल
२१.०५.२०१७

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.