कविता

तू बेजुबान है….

वेजुबान है रे ! तू वेजुबान है
तेरी पीड़ा क्यों नहीं समझता इंसान है
दौड़ता है तू केवल भूख की खातिर
तेरे अंदर भी कोई ईमान है
काटता है जीवन तू दुःख से भरा
जो तेरा दर्द न समझे वो नादान है
करता है हमेशा तू सभी का भला
फिर तेरे लिए क्यों क्रुद्ध होता इंसान है
समझ जाता है जो तेरी भाषा को
सच मानिए केवल वही पूर्ण इंसान है
नहीं माँगता तू किसी से कभी कुछ
तेरे दिल में बस एक ही अरमान है
कि जानते हैं सब लोग दर्द तेरा
फिर भी क्यों बनते इससे अंजान हैं
अपने दर्द जैसा इनका भी दर्द समझें
क्योंकि ये मुर्दा नहीं इनमें भी जान है
ये वर्षों से कष्ट सहते आ रहे हैं
सुनाते सभी को अपनी दास्तान हैं
पर देखकर नकारते हैं सब इन्हें
और कहते हैं कि तू वेजुबान है
वेजुबान होना क्या गुनाह है इनका
इनका भी कोई खुदा और भगवान है
तड़पते रहते हैं ये रात और दिन
इनके लिए नहीं कोई इंतजाम है
आंसू ही सबकुछ वयां करते इनके
जिनको नहीं समझता ये इंसान है
कष्ट ही देते रहते हैं सब इनको
और फिर कहते हैं कि हम इंसान हैं
जो नहीं समझते हैं भाषा दिल की
वो कहते हैं कि तू वेजुबान है
देख इनके दर्द को जिसके न निकले आँसू
वो इंसान नहीं है एक शैंतान है
           – रमाकान्त पटेल

रमाकान्त पटेल

ग्राम-सुजवाँ, पोस्ट-ढुरबई तहसील- टहरौली जिला- झाँसी उ.प्र. पिन-284206 मो-09889534228