गीत/नवगीत

गीत – पत्नी का संदेश सैनिक पति के नाम

सद्य व्याहता मुझे छोड़कर, ओ मेरे मनमीत !
चले गये तुम रिपु से लड़ने, ओ मेरे मनमीत !!

हाथों में मेरे मेंहदी है
पांवों में है महावर
सेज सुहाग की शोभित अब भी,
महक रहा सारा घर

तुम हो प्रहरी भारत माँ के, तुम वीरों के गीत !
चले गये तुम रिपु से लड़ने, ओ मेरे मनमीत !!

मेरे कंगन खनक रहे हैं,
बिंदिया चमके चम- चम
पायल अब भी रुनझुन करती,
तेरे बिन, ग़म ही ग़म

मिलन हमारा रहा अधूरा, रही अधूरी प्रीत !
चले गये तुम रिपु से लड़ने, ओ मेरे मनमीत !!

श्रेष्ठ प्रणय से वतनपरस्ती,
यह तुमने सिखलाया
राह फर्ज़ की सबसे बेहतर,
यह तुमने जतलाया

विजय वरो, या वरो शहादत, बनो शौर्य की रीत !
चले गये तुम रिपु से लड़ने, ओ मैरे मनमीत !!

नहीं करुंगी कोई शिकवा,
ना आंसू ढलकाऊँ
यादें जब आएंगी तेरी
गर्व से मैं भर जाऊँ

पर ना पीठ दिखाना दिलवर,बन जाओ ख़ुद जीत !
चले गये तुम रिपु से लड़ने, ओ मेरे मनमीत !!

सीमा की रक्षा तुमसे है,
तुमसे माँ का मान
तुम ही हो, हम सबकी अस्मत,
और हम सबकी आन

इंतज़ार, तेरे गौरव का, ओ मेरे नवगीत !
चले गये तुम रिपु से लड़ने, ओ मेरे मनमीत !!

प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com