कहानी

कहानी ….मदर

बात उन दिनों की है जब मैं हायर सकेंडरी करके इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था | मेरे साथ मेरे मोहल्ले का लड़का अनूप भी मेरा सहपाठी था | हम दोनों परीक्षा के बाद विदेश जाने का प्रोग्राम बना रहे थे कि मुसीबतों की गर्म लू मेरे घर की ओर बही | मेरी माँ को हल्का-हल्का बुखार हुआ और वह बुखार धीरे-धीरे बढ़ता गया और जब डाक्टरों ने पूरा चेकअप करके रिपोर्ट दी तो उसे कैंसर हो गया था | हमारे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा | हम तीन बच्चे और माँ-पिता जी | पांच सदस्यों का परिवार | मैं सबसे बड़ा था | शिवा और रशिम मुझसे छोटे थे | शिवा दसवीं और रशिम बी.ऐ. द्वितीय वर्ष में पढ़ रहे थे | पिताजी एक छोटा सा ढाबा चलाकर हमारा परिवार चला रहे थे | माँ की बीमारी के बाद पिताजी हमेशा माँ कि सेवा में रहने लगे | परिणामस्वरूप पिताजी का बिजनेस मंदा हो गया | कभी ढाबा खुलता कभी बंद रहता | जो स्थायी ग्राहक वहां भोजन करते थे अब वे इधर-उधर खाने लगे | डाक्टरों के चक्कर और दवाइयों के खर्च पर पिताजी की जमा पूंजी भी खत्म होती गई | मैं पढ़ाई छोड़कर घर आ गया | घर में सुबह-शाम की रोटी का जुगाड़ कठिन लग रहा था | ऊपर से छोटों की पढ़ाई | उन्हीं दिनों लोक निर्माण विभाग में मेरे पिताजी के बचपन के दोस्त वहां नए-नए सहायक अभियंता आए थे | जब उन्हें मेरी माँ की बीमारी का पता चला तो वह पिता जी से मिलने हमारे घर आए | पिताजी ने उन्हें घर की परिस्थितियों से अवगत करवाते हुए मुझे कहीं एडजस्ट करवाने की बात कही | उन्होंने मुझे दैनिक वेतन पर रोड़ सुपरवाईजर का मस्ट्रोल दिला दिया | अब मैं बतौर रोड़ सुपरवाइजर नियुक्त हो गया | दैनिक मजदूरी थी मात्र सात रूपये | सात रुपये उस जमाने मे काफी होते थे | यह पिछली सदी के सातवें दशक की बात है दो वक़्त का दाल-फुलका सात रुपये में नसीब हो जाता था | परन्तु मेरी परिस्थितियों के अनुसार तो यह रकम कम थी | क्योंकि पूरे परिवार बच्चों की पढ़ाई व मां की दवाइयों के लिए यह राशी पर्याप्त नहीं थी | मुझे और पैसों की जरुरत थी, लेकिन मरता क्या न करता | कुछ नहीं होने से कुछ तो था | डलहौज़ी जैसी हसीन पर्यटक नगरी की सड़कों का मैं सुपरवाइजर | बरसात के दिन | धुंध ही धुंध | एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी नजर नहीं आती थी | मेरे जीवन में भी अब धुंध हे धुंध थी | कहां मैं और अनूप इंजीनियरिंग करके विदेश जाने के सपने देखा करते थे और अब कहां मैं धुंध भरी सड़कों पर आकार अट गया था | मुझे रह रहकर ये कल्पनाएं तंग करती |

समय तो अपनी गति से चलता रहता है | अनूप इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर आ गया और कुछ ही दिनों में उसका विदेश जाने का सपना भी पूरा हो गया | वह जर्मनी चला गया | मैं सड़क किनारे खड़ा हो मजदूरों से काम लेता और अंदर ही अंदर हमेशा अपनी मां के बारे में सोचता रहता | मां की हालत काफी नाजुक होती जा रही थी | दवाइयों का सहारा या हम बच्चों की प्रार्थना का फल था कि इतनी गंभीर बीमारी के बावजूद मां जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रही थी | अनूप जर्मन में रहते हुए भी मेरे साथ बराबर जुड़ा था | हर महीने उसकी चिट्ठी आती | हर चिट्ठी में वह अक्सर मां की बीमारी और घर के बारे में पूछता | मैं भी उसे बराबर हर महीने चिट्ठी लिखता | उसे जर्मन गये अभी छह महीने ही हुए थे कि उसे वहां टायफाइड हो गया | वह वहां अस्पताल में भर्ती हो गया | उसकी बीमारी लंबी खिंच गई और लगभग दो महीने वह उसी अस्पताल में बिस्तर पर पड़ा इलाज करवाता रहा | परदेस में उसका अपना कोई तो था नहीं जो उसके साथ बैठकर उसका दुख बांटता | एक सफाई कर्मचारी रोज़ी, जिसकी उम्र करीब पचास वर्ष के लगभग थी सफाई करने के बाद उसके पास आकर बैठ जाती और उसकी सेवा करती | दोनों धीरे-धीरे घुल-मिल गये | अनूप को लगता परदेस में भी एक मां है जो उसकी देखभाल करती है और उसके साथ सुख-दुख बांटती है |

मेरे पत्र जब उसके पास पहुँचते तो अनूप मेरे पत्रों का अंग्रेजी अनुवाद करके उसे सुनाता  अनूप ने उसे यह भी बताया कि हम दोनों का विदेश जाने का सांझा सपना था | लेकिन वह मां की बीमारी के कारण पूरा नहीं कर सका | मेरे घर के हालात के बारे अनूप ने शायद सब कुछ रोजी को बता दिया था | न जाने कब उसे मेरी दयनीय दशा पर तरस आया | उसने मुझे स्वयं पत्र लिखा और अस्पताल की सफाई करके उसे जो पैसे मिलते थे उनमें से तीन सौ पचास रुपये हर महीने वह मुझे भेजने लगी | यह रूपये मेरे मुसीबत भरे दिनों में बड़ी धनराशि थी | ऐसे वक्त में जब मेरे अपने भी आंखें चुराने लगे थे उस वक्त विदेश में रहती साफ-सफाई करने वाली एक अजनबी महिला ने मुझे सहारा दिया | भीतर ही भीतर मैं उसे मदर कहने लगा था | यह सिलसिला करीब डेढ़ साल तक चलता रहा | मदर मुझे हर महीने तीन सौ पचास भेजती रही | और मां भी डेढ़ साल तक बीमारी से लड़ती रही | अंत में मां हार गई और बीमारी जीत गई | मां यह संसार छोड़कर अनंत यात्रा पर चली गई |

इस बीच मदर के पैसे व पत्र आने भी अचानक बंद हो गये | अनूप ठीक होते ही उस शहर से दूसरे शहर चला गया था | मैं पत्र लिखता, लेकिन कोई जवाब नहीं आता | एक साल बीत गया मां की पहली बरसी हो गई | हार कर जब कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला तो मैंने अनूप से मदर के बारे में जानने को लिखा |

कुछ दिनों बाद अनूप का पत्र आया | उसने लिखा था, “दिनेश..मैं मदर को ढूंढने उस अस्पताल गया था जहां वह सफाई करती थी | वहां पता किया तो ज्ञात हुआ कि वह महिला 25 दिसम्बर 1975 को सीढ़ियों से फिसल गई और गिरते ही उसकी मौके पर ही मौत हो गई | इस दुनिया में उसका अपना कोई नहीं था | इसलिए उसके शव को वहीं अस्पताल के पास कब्रिस्तान में दफना दिया गया | अस्पताल के एक कर्मचारी ने मुझे उसकी कब्र भी दिखाई | उस कब्र के पास कुछ नर्गिस के फूल उग आये हैं | मैंने कब्र पर फूल चढ़ाए और लौट आया |”

मैंने पत्र में 25 दिसम्बर की तारीख पढ़ी तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ | उसी दिन मां का भी देहांत हुआ था | मां भी उसी दिन सुबह अनंत यात्रा पर निकल गई थी और मदर भी | अब मैं जब भी मां का श्राद्ध करता हूँ तो मदर को भी याद कर लेता हूँ तर्पण देकर मां की तरह….|

अशोक दर्द

 

 

अशोक दर्द

जन्म –तिथि - 23- 04 – 1966 माता- श्रीमती रोशनी पिता --- श्री भगत राम पत्नी –श्रीमती आशा [गृहिणी ] संतान -- पुत्री डा. शबनम ठाकुर ,पुत्र इंजि. शुभम ठाकुर शिक्षा – शास्त्री , प्रभाकर ,जे बी टी ,एम ए [हिंदी ] बी एड भाषा ज्ञान --- हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत व्यवसाय – राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिंदी अध्यापक जन्म-स्थान-गावं घट्ट (टप्पर) डा. शेरपुर ,तहसील डलहौज़ी जिला चम्बा (हि.प्र ] लेखन विधाएं –कविता , कहानी , व लघुकथा प्रकाशित कृतियाँ – अंजुरी भर शब्द [कविता संग्रह ] व लगभग बीस राष्ट्रिय काव्य संग्रहों में कविता लेखन | सम्पादन --- मेरे पहाड़ में [कविता संग्रह ] विद्यालय की पत्रिका बुरांस में सम्पादन सहयोग | प्रसारण ----दूरदर्शन शिमला व आकाशवाणी शिमला व धर्मशाला से रचना प्रसारण | सम्मान----- हिमाचल प्रदेश राज्य पत्रकार महासंघ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए पुरस्कृत , हिमाचल प्रदेश सिमौर कला संगम द्वारा लोक साहित्य के लिए आचार्य विशिष्ठ पुरस्कार २०१४ , सामाजिक आक्रोश द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में देशभक्ति लघुकथा को द्वितीय पुरस्कार | इनके आलावा कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित | अन्य ---इरावती साहित्य एवं कला मंच बनीखेत का अध्यक्ष [मंच के द्वारा कई अन्तर्राज्यीय सम्मेलनों का आयोजन | सम्प्रति पता –अशोक ‘दर्द’ प्रवास कुटीर,गावं व डाकघर-बनीखेत तह. डलहौज़ी जि. चम्बा स्थायी पता ----गाँव घट्ट डाकघर बनीखेत जिला चंबा [हिमाचल प्रदेश ] मो .09418248262 , ई मेल --- ashokdard23@gmail.com