गीत/नवगीत

बिसरी यादों के साए जब…

बिसरी यादों के साए जब,
हमसे आ लिपटे।
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे।।

बन चलचित्र चला बचपन का,
हर प्यारा मंज़र।
उतर गया फिर से आँखों में,
मिट्टी वाला घर।।
जब जब करी शरारत माँ के
आँचल में सिमटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…

हरे-भरे खेतों की मोहित,
करती हरियाली।
अमराई के बाग कूकती,
थी कोयल काली।।
शस्यश्यामला धरती ऊपर,
श्यामल मेघ घुटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…

तरुणाई के सारे साथी,
जाने कहाँ गये।
खुशियों के वो दीपक बाती,
जाने कहाँ गये।।
उनके बिन सब कुछ होते भी,
हम हैं लुटे लुटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…

काश लौट आता जीवन में,
एक बार बचपन।
तो कुछ पल जी लेते फिर से,
जीवन में जीवन।।
जब उतरे पल आँखों में जो,
थे हँस खेल कटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…

सतीश बंसल
०३.०६.२०१८

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.