गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो  होता  नहीं  हमारा क्यों,
रुठा किस्मत का तारा क्यों!
आते नहीं एक दिन मिलने,
फिर करते हो इशारा क्यों!
हम  दोनो का इक दूजे बिन,
अब होता नहीं गुजारा क्यों!
चांदनी  बिन  चांद को तुमने,
फलक़ से नीचे उतारा क्यों!
एक  यहां  भरपेट मिला तो,
एक है भूख का मारा क्यों!
खेल में दोनो शामिल थे फिर,
‘जय’ ही जीता-हारा क्यों!
     —  जयकृष्ण चांडक ‘जय’
              हरदा म प्र

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से