लघुकथा

लघुकथा – प्रश्न

“यह श्यामा का बेटा महेश कितना संस्कारवान् है,कि अपनी मां की हर बात मानता है ! मां की कभी कोई बात नहीं टालता,और पूरे समय मां के साथ ही साये की तरह चिपका रहता है ! मां को हर समय खुश रखता है,सच में श्यामा बहुत कि़स्मतवाली है !” श्यामा की हमउम्र सास बन चुकीं औरतें आपस में बातें करते हुए कह रही थीं !

उधर दूसरी ओर महेश की पत्नी रागिनी की हमउम्र औरतों की बातचीत का विषय भी महेश की मातृभक्ति ही था पर मूल्यांकन एकदम भिन्न था ! वे कह रही थीं -” यह रागिनी के पति महेश को तो देखो चौबीसों घंटे मां की सेवा करने में लगा रहता है ! मां को खुश रखने के अलावा और कुछ तो उसे मानो सूझता ही नहीं है ! लगता है जैसे वह यह भूल ही गया है कि वह शादीशुदा है, और उसका अपनी पत्नी के प्रति भी कुछ फर्ज़ है ! पत्नी की ऐसी अनदेखी करने वाला पति तो भगवान दुश्मन को भी न दे !”

इन दो विरोधाभासी मूल्यांकनों से बेख़बर महेश अपनी ही रौ में आगे बढ़ता जा रहा था, पर एक अनुत्तरित प्रश्न हवा में तैर रहा था कि किस मूल्यांकन को सही माना जाए,पहले को या दूसरे को !

डा. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com