मुक्तक/दोहा

दोहे – गुरु महिमा

गुरु सत चित आनंद है , अविचल और अपार |
संशय मिट जाते सभी , हो भव सागर पार ||

गुरु के अमित प्रकाश से , मिटे सकल अज्ञान |
कलुष तमस मन का छटे, मानव बने सुजान ||

गुरु वह मधुर मृदंग है , बजे अनाहद नाद |
जिसने तनमय हो सुना , उससे दूर प्रमाद ||

गुरु का अनुपम ज्ञान ही , सदा जगाता भाग |
भय के भागे भूत सब , मिले सदा अनुराग ||

गुरु प्रसाद भगवान का , ईश्वर का प्रतिरूप |
जिसने इसको चख लिया ,चमका उसका रूप ||

रोम – रोम पुलकित करे , गुरु ऐसा मकरंद |
मनहर मोहन बाँसुरी , बरसाये आनंद ||

हे गुरुवर कर दो कृपा , मिटे सकल अज्ञान |
ज्ञान ज्योति उर में जले , भर दो वह सद्ज्ञान ||

गुरु के तप और ज्ञान से , हो विकार का नाश |
गुरु की महिमा है प्रबल , गुरु आशा विश्वास ||

उठना चलना बोलना , बहुत सिखाये काम |
पहली गुरु माता मेरी , तुमको करूँ प्रणाम ||

मंजूषा श्रीवास्तव

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016