कहानी

खाली-खाली

[यह कहानी केवल वयस्कों के लिए है]
[This Story is only for adults]

खाली-खाली

कमला ने बेसन भरे हाथों से बचाते हुए दरवाज़े की कुंडी खोली तो दरवाज़े पर अपर्णा खड़ी थी।
“नमस्ते भाभी।”
“अरे आओ-आओ अपर्णा। बहुत सही समय से आई। पकौड़े तल रही हूँ। खा कर जाना।”
“अरे नहीं भाभी। आप बस नव्या को बुला दीजिए। वरना हम सेमिनार के लिए लेट हो जाएंगे।”
“अभी बुला देती हूँ।”
अपर्णा की जल्दीबाजी देख कमला को पकौड़े जल जाने की सुध ही नहीं रही। वह बस नव्या को बुलाने उसके कमरे की ओर बढ़ गई। नव्या अंदर तैयार हो रही थी मगर दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। कमला ने कुहनी से ही दरवाज़े हो हल्का सा धक्का दिया तो वह खुल गया।
कमला नव्या को आवाज़ देने ही वाली थी कि आईने के सामने खड़ी नव्या की हरकत देखकर वह चौंक गई। नव्या ने अपना बायाँ हाथ हवा में उठा रखा था और दाहिने हाथ को कुर्ते के ऊपर से अंदर डालकर अपना बायाँ सीना दबा-दबाकर देख रही थी।
कमला को यह हरकत बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। उसने तुंरत टोकते हुए कहा।
“नव्या। ये क्या कर रही हो तुम?”
नव्या पहले तो सकपका गई और चौंक के पीछे पलटी।
भाभी को दरवाज़े पर देख उसने चैन की सांस ली।
“ओह, भाभी आप। आपने तो डरा ही दिया।”
इससे पहले कि कमला नव्या की आगे खबर लेती। उसकी नाक को जलते हुए पकौड़ों की खबर लग गई।
“हे भगवान! मेरे पकौड़े।” कहते हुए वह किचन की ओर दौड़ी।
नव्या बस बुदबुदा कर रह गई।
“आपके नहीं, प्याज के।”
जबतक कमला सारे पकौड़े तलकर बाहर आई, नव्या और अपर्णा जा चुके थे और बाहर लॉन में बैठे घर के बाकी लोग पकौड़ों का इंतजार कर रहे थे।
*****
दिनभर तो नहीं मगर जब रात में कमला लेटने को हुई तो सुबहवाला दृश्य कमला की आँखों के आगे नाच गया। कमला को कुछ सूझ नहीं रहा था कि नव्या ऐसा क्यूँ कर रही थी। क्या उसकी मानसिक हालत ठीक है? या फिर किसी लड़के-वड़के का चक्कर तो नहीं? क्या है, कैसे पता करे? कौन बताएगा?
उसने तड़पकर निखिल की ओर देखा। वह बिस्तर पर लेटे-लेटे कोई बिजनेस पत्रिका पढ़ने में मशगूल था। यह उसका रोज़ का काम था। सोने से पहले वह कुछ देर पत्रिका पढ़ना पसंद करता था। बिज़नेस मैनेजमेंट पढ़ाते-पढ़ाते वह ऊब चुका था और अब अपना कुछ शुरू करना चाहता था।
कमला उसे खोया देख फिर अपने ख्यालों में खो गई। वह यह बात घर में किसी से कह भी नहीं सकती। नव्या से भी पूछेगी तो अब वह भी टाल जाएगी। सुबह ही अच्छे से पूछ लिया होता तो शायद जवाब मिल जाता।
उसने फिर पलटकर निखिल को देखा। वो अब भी उसी पत्रिका में डूबा हुआ था।
“सुनो।”
पत्रिका में डूबे ही डूबे निखिल ने कहा।
“कहो”
“सुनो ना।”
किसी भी अवस्था में पत्रिका से बाहर न निकलने का संकल्प लिए निखिल ने कहा।
“कहो तो सही”
असफल कमला बोली।
“हम्म…नव्या की शादी के बारे में कोई क्यूँ नहीं सोच रहा।”
इस सवाल का जवाब तो निखिल पत्रिका में डूबे रहकर भी दे सकता था, सो उसने दिया।
“पहले उसे एम.एस.सी. नर्सिंग कर लेने दो, एक अच्छा सा जॉब पा जाने दो फिर शादी भी हो जाएगी।”
निखिल ने पत्रिका बंदकर सिरहाने बने बेड के ड्राअर में डाल दी। कुहनी पर अध लेटे-लेटे ही कहा।
“उसमें अभी बहुत टाइम है, अभी से क्या सोचना। अभी तो……”
तकिए पर सिर टिकाकर पूरी तरह लेटते हुए निखिल ने अपनी बात पूरी की।
“……लाइट बंद करो, सोया जाए।”
कमला लाइट बंदकर निखिल की ओर पीठ कर लेट गई। अंधेरे में उसकी एक जोड़ी आँखे जाग रही थीं। मगर बाहर की तरह ही अंदर भी अँधेरा ही था और कुछ सूझता नहीं था।
वह आँख बंदकर सोने की कोशिश कर ही रही थी कि कच्ची-पक्की नींद में सो रहे निखिल ने आदतन कमला की कमर में हाथ डालकर अपने करीब खींच लिया और आदतन सीना दबाकर सो गया।
*******
डायनिंग टेबल पर एक ओर बैठी कमला मटर छील रही थी। आज रात के खाने में आलू-मटर बननेवाला है। सामने की कुर्सी पर बैठी नव्या सेमिनार के फोटो मोबाइल से फेसबुक पर अपलोड कर रही थी। बीच-बीच में एकाध फोटो कमला और कमला के बगल में बैठी अपनी माँ को भी दिखा रही थी।
इतने में निखिल ने प्रवेश किया और मोजे उतारकर जूते में खोंसते हुए नव्या पर सवाल दाग दिया।
“किस चीज़ का सेमिनार था जिसके फोटो इतने मज़े से दिखाए जा रहे थे?”
“ब्रेस्ट कैंसर का भैया।”
निखिल चुप हो गया और चुपचाप जूते रैक पर रखकर हाथ-मुँह धोने चला गया।
कमला भी मटर बीच में छीलना छोड़कर चाय चढ़ाने किचन में चली गई। नव्या ने माँ को फोटो दिखाना जारी रखा। टेबल के उस पार बैठी माँ अनजान चेहरों के बीच नव्या को देख-देख मुस्कुरा रही थी।
थोड़ी देर में निखिल कपड़े बदलकर डाइनिंग टेबल पर आ बैठा। कमला भी चाय लेकर हॉल में पहुँची। सास को चाय देने के लिए कमला झुकी तो नव्या की नज़र कमला के डीप कट ब्लाउस के किनारे गर्दन की दाईं ओर, त्वचा में एक बहुत छोटे से उभार पर गई।
अपने सीने पर ठीक उसी जगह नव्या ने उँगली रखते हुए पूछा।
“आपको यहाँ क्या हुआ है?”
सबकी नजर पहले नव्या की ओर फिर कमला की ओर गई। दाएं हाथ में छोटा सा ट्रे पकड़े कमला ने बाएं हाथ से उस जगह छूकर देखा।
“अरे कुछ तो नहीं है। कीड़ा-वीड़ा काटा होगा।”
इतना कहकर कमला ने निखिल को भी चाय दी और नव्या को आगे आश्वस्त करते हुए बोली।
“वैसे भी ये कीड़े-मकोड़ों का मौसम है।”
नव्या के साथ-साथ सभी आश्वस्त हुए क्योंकि वह उभार लग भी रहा था कीड़े के काटने जैसा।
सबके आश्वस्त होते ही निखिल ने एक ज़ोरदार अपील की।
“वैसे मौसम पकौड़ों का भी है।”
कमला ने तुरंत यह अपील खारिज की।
“अगर अभी पकौड़े बन गए तो रात का खाना कोई नहीं खा पाएगा। बच्चे तो बिल्कुल नहीं खाएंगे।”
“अरे हाँ, कहाँ हैं दोनों रणचंडियां।”
ट्रे वहीं टेबल पर रखकर मटर छीलने का अपना कार्यक्रम वापस शुरू करते हुए कमला ने जवाब दिया।
“पापाजी की जेब ढीली करने मार्केट गई हैं।”
********
नव्या जल्दी-जल्दी चप्पल रैक पर रखकर हाथ में कैरी बैग लिए ही कमला के कमरे में घुस गई और बैग को बिस्तर पर फेंकते हुए जल्दी मचाई।
“ये लो भाभी, आपका ब्लाउज़ आ गया। अब जल्दी से तैयार हो जाओ नहीं तो हम शादी के लिए लेट हो जाएंगे।”
कमला ने फट से कैरी बैग से ब्लाउज़ निकाला और अलट-पलटकर देखा। देखते ही उसके माथे पर बल पड़ गए और उसने अपने कमरे की ओर जाती हुई नव्या को एक ज़ोरदार आवाज लगाई।
“अरे नव्या!”
नव्या पलटी।
“क्या हुआ भाभी?”
“इसमें तो बटन पीछे बनाए हैं।”
“हाँ! मैंने ही कहा था कपवाले बनाने के लिए। इसमें बटन पीछे ही लगाए जाते हैं। आजकल यही फैशन है।”
“मगर मैं इसे अकेले कैसे पहनूँगी?”
“मैं मदद कर दूंगी। लेकिन पहले मैं तैयार हो लेती हूँ।”
“हाँ यह ठीक रहेगा। तबतक मैं सिम्मी और विम्मी को तैयार कर देती हूँ।”
थोड़ी देर में नव्या जब भाभी के कमरे में वापस आई तो सिम्मी-विम्मी तैयार होकर बाहर खेल रहे थे और कमला शीशे के सामने खड़े होकर उसी ब्लाउज़ से जूझ रही थी। आईने में नव्या को आते देख उसने राहत की सांस ली।
“देख न नव्या। लगता है बड़ा भी सिल दिया है।”
नव्या ने आईने में भाभी के ब्लाउज़ को देखा और उस ढीले-ढाले अधखुले ब्लाउज़ से झांकते त्वचा के उस उभार को भी देखा जो ऐसा दिख रहा था जैसे त्वचा के नीचे एक गोजर छुपा बैठा हो। नव्या ने उस ओर उँगली करते हुए कहा।
“भाभी। ये ठीक नहीं हुआ। आप तो कह रही थीं कीड़े ने काटा है।”
“हाँ। देख न। ठीक होने की बजाय और काँख की ओर बढ़ना शुरू हो गया है।”
“तो फिर आपने डॉक्टर को नहीं दिखाया।”
“नहीं। कभी फुर्सत में दिखाऊंगी। अभी कोई दरद-वरद थोड़े न हो रहा। न कोई खुजली-वुजली या चमड़ी पर असर हो रहा है।”
नव्या ने परेशान होते हुए कहा।
“नहीं भाभी। आपको फिर भी डॉक्टर को दिखाना चाहिए।”
नव्या की ओर पलटकर कमला ने जवाब दिया।
“और डॉक्टर से कहूँगी क्या कि मुझे हुआ क्या है। ये कोई फोड़ा-फुंसी हो तो भी बताऊंगी।”
नव्या ने लगभग बेबस सा होते हुए कहा।
“भगवान करे भाभी कि ये फोड़ा-फुंसी ही हो। आप जानती नहीं, ये कुछ भी हो सकता है…”
कमला ने भौहें सिकोड़ लीं। उसकी सिकुड़ी हुई भौहें जैसे पूछ रही थीं कि क्या हो सकता है। नव्या को न चाहते हुए जवाब देना पड़ा। उसने शब्द चबाचबाकर धीरे से ऐसे बोला जैसे वह जिस शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहती थी उसका इस्तेमाल करने पर मजबूर हो गई हो।
“भाभी…ये… ये …कैंसर भी हो सकता है।”
भाभी बिफर पड़ी।
“तू पागल है क्या नव्या। मैंने कभी गुटखा खाया है, सिगरेट-शराब पी है। फिर कैसे कैंसर?”
कमला गुस्से में अपने बाल संवारने लगी। इतना खीझी हुई थी कि उलझे बालों में कंघी फँसने पर कंघी को ज़ोरों से खींच बाल ही उखाड़ दे रही थी।
भाभी का गुस्सा देख नव्या की भी सिट्टी-पिट्टी गुम थी।
वह भी चुपचाप भाभी को तैयार होने में मदद करने लगी जबकि निखिल ड्राइंग रूम से ही “जल्दी करो-जल्दी करो” का नारा दे रहा था।
निखिल ने इतना शोर मचाया कि नव्या को कहना पड़ा “आप लोग आगे निकलो। मैं और भाभी ऑटो कर के आ जाएंगे।”
“तुम्हें मैरिज लॉन का रास्ता तो पता है न?”
“डोंट वरी भैया। गूगल कर के आ जाएंगे।”
********
ऑटो वाले को रास्ता बताते हुए नव्या यह भी गूगल कर रही थी कि डॉ मेहता का क्लिनिक कब तक खुला रहता है। आठ बजे तक। अभी आठ बजने में टाइम है तब तक पहुँच जाएंगे।
“अरे नव्या! क्या तुझे पक्का पता है कि मैरिज लॉन को यही रास्ता जाता है।”
“अरे नहीं भाभी, वो क्या है न कि मुझे रास्ते में ज़रा अर्जेंट काम है। तो थोड़ा घूमकर जाएंगे। काम भी हो जाएगा और शादी भी अटेंड कर लेंगे।”
“ओह! मैं भी सोचूँ, यह रास्ता जाना-पहचाना नहीं लग रहा।”
ऑटो को एक क्लिनिक के बाहर रुकवा कर नव्या क्लिनिक की ओर जाने लगी तो देखा भाभी आटो में ही बैठी हैं, साथ नहीं आ रही।
“अरे भाभी। आप भी चलो ना।”
“अरे नहीं। तू अपना काम खत्म कर आ जा, तब तक मैं यहीं ऑटो में वेट करती हूँ।”
“अरे नहीं भाभी। यह इलाका अच्छा नहीं है, वो भी इतना सज-धज के, गहने पहने, बाहर बैठना ठीक नहीं है। अंदर चलो, महफूज़ रहेंगे।”
भाभी तुरंत ऑटो से निकल आईं और नव्या ने मन ही मन इस युक्ति के लिए अपनी पीठ थपथपाई।
अंदर पहुँचकर नव्या ने राहत की सांस ली क्योंकि उसे डर था कि वहाँ मरीज़ों की लम्बी लाइन होगी। मगर किसी मरीज़ को न पाकर उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया।
रिसेप्शन पर जाकर उसने डॉ मेहता से मिलने की गुजारिश की। रिसेप्शनिस्ट ने डॉ मेहता से इंटरकॉम पर बात की और दोनों को अंदर भेज दिया।
“नमस्ते सर! मेरा नाम नव्या है। मैं एमएससी नर्सिंग की स्टूडेंट हूँ। आप दो सप्ताह पहले हमारे कॉलेज में हुए सेमिनार में लेक्चर देने आए थे।”
“हाँ, मुझे याद है नव्या। बोलिए क्या बात है।”
“सर! ये मेरी भाभी हैं।”
कमला ने शालीनता से हाथ जोड़ लिए। डॉ ने भी सिर हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया और फिर नव्या को आगे सुनने लगे।
“सर, मुझे डाउट है कि.. कि…”
नव्या का गला भर गया था और वो आगे बोल ही नहीं पा रही थी।
“यस! बोलो नव्या।”
नव्या ने थूक घोंटते हुए कहा।
“…कि इन्हें ब्रेस्ट कैंसर है।”
अब नव्या और डॉक्टर की नजरें कमला पर थीं जबकि कमला आँखों से ही आग उगलती हुई नव्या को देख रही थी।
“आइए आपका चेक अप कर लेते हैं।”
कमला डॉक्टर के आगे तमाशा नहीं कर सकती थी इसलिए चुपचाप उठकर चल दी।
जाँच के बाद डॉक्टर के माथे पर आई शिकन ने कमला को भी अंदर तक हिला दिया। अब तक तो वह नव्या की बातों को कोरी बकवास समझ रही थी मगर अब…।
नव्या ने भी तुरंत आश्वस्त होना चाहा इसलिए पूछ बैठी।
“क्या लगता है डॉक्टर, क्या है?”
“देखो! मैं टेस्ट के बाद ही कुछ कहना पसंद करूँगा।”
अब तो कमला से भी नहीं रहा गया।
“फिर भी डॉक्टर, कुछ तो…”
डॉक्टर ने कमला से मुखातिब होते हुए उसे जवाब दिया।
“देखिए! मैं बस प्रार्थना करूँगा कि मेरा शक गलत साबित हो, बाकी तो टेस्ट के रिजल्ट ही बताएंगे। (नव्या से) सुनो! मैं लिख देता हूँ और अपनी भाभी का मैमोग्राफी और बायोप्सी टेस्ट करा लो और जैसे ही रिपोर्ट आए, फौरन मेरे पास चले आना।”
“जी सर!”
*******
मैमोग्राफी की रिपोर्ट आई। नव्या ने रिपोर्ट पढ़ ली और जो समझ नहीं आया वो गूगल करके देख लिया तो समझ आ गया। इस रिपोर्ट में कुछ नहीं निकला।
कॉलेज लौटते ही यह खबर देने नव्या किचन में घुस गई। कढ़ी चलाती कमला भी चहक उठी।
“मैं न कहती थी। भला मुझे कैंसर कैसे हो सकता है। मैंने कभी कोई गलत काम किया ही नहीं, न कभी किसी का बुरा सोचा, न किया। मैं भी सोचूँ भला स्तन का कैंसर तो स्तन पर होना चाहिए, और यह गांठ तो स्तन से कहीं ऊपर, कंधे के करीब है। तूने तो नव्या डरा ही दिया था मुझे। मुझे अगर सच में कुछ हो जाता तो विम्मी-सिम्मी का क्या होता।”
“शुक्र है भाभी कि मेरा शक गलत निकला। नहीं तो सच में फजीहत हो जाती।”
कढ़ी को दो बार और चलाकर कमला ने आगे पूछा।
“तूने रिपोर्ट डॉक्टर को तो दिखाई न।”
“हां भाभी, दिखाई न।”
“डॉक्टर ने क्या कहा?”
“बायोप्सी की रिपोर्ट आने तक वेट करने को कहा है।”
कमला फिर कढ़ी चलाने में व्यस्त हो गई और बेसन पकने का वेट करने लगी। जबकि नव्या ने फ्रिज से एक सेब निकाला और सिंक में धोकर बाहर चली गई।
**********
बायोप्सी की रिपोर्ट भी आई। मगर इस बार चहकने का कोई कारण नहीं था बल्कि अकेले में तो कमला ने सिसकियां भी लीं। फिर भी कमला को ये उम्मीद थी कि शायद डॉक्टर को रिपोर्ट दिखाने पर डॉक्टर उसे कुछ और बताए। सो दोनों शाम को बाजार का बहाना कर चटपट डॉक्टर के क्लिनिक जा पहुंचीं।
“मुझे जिसका डर था नव्या वही हुआ। देखो थर्ड स्टेज का कैंसर निकला…”
डॉक्टर को बीच में ही टोकते हुए कमला ने सवालों की बौछार शुरू कर दी।
“मगर डॉक्टर मैंने तो कभी कुछ गलत चीज़ खाई नहीं। जैसे गुटका, तम्बाकू वगैरह…।”
“ये स्तन का कैंसर है, मुंह या गले का नहीं।”
“हाँ डॉक्टर, मगर फिर भी, मैंने अपने दोंनो बच्चों को छः-छः महीने स्तन का दूध पिलाया है और जबसे मां बनी हूँ अपनी सेहत का बहुत ध्यान रखती हूँ ताकि बच्चों का ख्याल रख सकूँ क्योंकि उन्हें हर समय मेरी ज़रूरत रहती ही है।”
“वह सब ठीक है। मगर यह तो कभी भी किसी को भी हो सकता है। इसका इन सब बातों से कोई लेना-देना नहीं है।”
कमला ने एक आखिरी दांव फेंका, जैसे डॉक्टर को मना लेने से रिपोर्ट झुठलाई जा सकती हो।
“मगर डॉक्टर, स्तन का कैंसर तो स्तन में होना चाहिए। यह तो कहीं ऊपर है।”
“यह जहां है, वहीं से स्तन की सारी नसें इकट्ठी होकर शुरू होती हैं और नीचे आकर फैलने लगती हैं। इसीलिए पहले ही दिन मुझे चिंता हो गई थी।”
डॉक्टर की बात सुनते-सुनते ही कमला की आँखों में पानी आ गया और बात पूरी होते-होते वह फफककर रो पड़ी।
“मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, डॉक्टर। मेरे बिना उनका क्या होगा? और…और …मैं घर में क्या बताऊँगी। मेरे पति क्या सोचेंगे कि मुझे इतनी बड़ी बीमारी कहाँ से लग गई। और पापा जी – मम्मी जी क्या सोचेंगे मेरे बारे में? उनसे कोई कैसे बताएगा कि मुझे कैंसर है, वो भी कहाँ, छि:।”
“अरे, आप अभी इतना सब मत सोचिए। हम हैं न। आपको कुछ नहीं होने देंगे। बस आप जल्द से जल्द इलाज शुरू करवाइए, इससे पहले की देर हो जाए। (नव्या से) मगर आप लोगों ने अबतक घर में क्यों नहीं बताया। इस बीमारी से लड़ने के लिए आप लोगों को घरवालों के पूरे सपोर्ट और मदद की ज़रूरत पड़ेगी।”
नव्या ने जिझकते हुए कहा।
“हमें लगा कि….कुछ नहीं निकलेगा तो खामखाँ…।”
कमला अपने आंसू पोंछ अब खुद को मजबूत कर रही थी। उसके पास और चारा ही क्या था। सो नव्या की बात पूरी होने से पहले ही बोली।
“डॉक्टर। मेरे ठीक होने के कितने चान्सेस हैं?”
“मेडीकल फील्ड में किसी भी सर्जरी के बारे में कोई भी गारंटी के साथ नहीं कह सकता। मगर हम हंड्रेड परसेंट कोशिश करेंगे और आपके कैंसर युक्त सेल्स को जल्द से जल्द निकाल देंगे। आपको शुक्र मनाना चाहिए कि नव्या आपको बहुत देर होने से पहले मेरे पास ले आई। वरना मेरे पास अधिकतर ऐसी महिलाएं आती हैं जिनका कैंसर जब तक सड़ नहीं जाता, वो मुँह नहीं खोलतीं। जब घरवालों की नाक में बदबू का कारण बन जाता है तब घरवाले उन्हें यहाँ मरने के लिए छोड़ जाते हैं। खैर छोड़िए। अभी आपके इलाज के लिए दो-एक टेस्ट और करने होंगे। फिर सर्जरी शुरू करेंगे। हो सकता है …या यों कहें कि करना ही पड़ेगा। आपके दोनों स्तन निकालने होंगे। फिर एक और सर्जरी से आपके शरीर में बचे-खुचे कैंसर के सेल निकाले जाएंगे और फिर कीमो और रेडिएशन थेरेपी। यह बहुत लंबी और जटिल प्रक्रिया है। आपको बहुत धीरज से काम लेना होगा। इसीलिए मैंने आपको शुरू में ही सबकुछ बता दिया। कई महीने लग जाएंगे। फिलहाल तो आपकी थोड़ी सी त्वचा निकाल कर हम लैब में भेजेंगे।”
कमला स्तब्ध सी सब सुनती रही। उसका दिल व दिमाग सुन्न सा हो गया। घर पहुंचने तक वह किसी आत्मा के वशीभूत शरीर सी लगी।
घर के भीतर प्रवेश करने पर उसे दुनिया अलग ही, अजीब सी दिखने लगी। घर लगा ही नहीं जैसे वही घर हो जहाँ वह आठ सालों से रह रही है। बच्चे लगे ही नहीं कि वही बच्चे हैं जिन्हें वह गंदी चप्पल पहनकर घर में दौड़ लगाने के लिए डांट सके। पति को भी उसने सूनी-सूनी नज़रों से देखा कि निखिल एक पल के लिए डर गया।
“क्या हुआ?”
कमला को होश आया और उसने नज़रें हटाते हुए कहा।
“कुछ नहीं।“
फिलहाल की समस्या ये थी कि घर में कैसे बताया जाए। नव्या को इतना तो पता था कि भाभी तो मुँह खोलेंगीं नहीं। ये भी उन्हीं औरतों में से एक हैं जो कैंसर के सड़ जाने तक चुप बैठती हैं। सो यह बीड़ा उसी को उठाना होगा। और आज ही उठाना होगा।
कमला विम्मी-सिम्मी को दादी के कमरे में सोने के लिए छोड़कर अपने कमरे में लौटी तो देखा नव्या निखिल को बताने जा रही है। उसका सीना धक से हो गया या यों कहें कैंसरयुक्त सीना धक से हो गया।
“भैया! मुझे कुछ बात करनी है आपसे।”
“हाँ बोल ना।”
“ऐसे नहीं, मेरे सामने यहाँ पलंग पर बैठो, तब बताऊँगी।”
निखिल खीझते हुए पलंग पर बैठा।
“ओफ्फो! क्या है? अब तो बोल।”
“वो क्या है न भैया कि एक डॉक्टर हैं, डॉ माथुर। वो बहुत बड़े कैंसर विशेषज्ञ हैं। उन्होंने विदेश में भी बड़ी-बड़ी सर्जरियाँ की हैं।”
“हाँ। ठीक है, तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ।”
“मैं भाभी को उनको पास लेकर गई थी।”
“कमला को? वो किसलिए?”
“टेस्ट कराने के लिए।”
चेहरे पर बड़ा सा प्रश्नचिन्ह खींचते हुए निखिल ने पूछा।
“कैसा टेस्ट?”
इससे पहले कि नव्या के गले में कुछ अटके या आकाश-पाताल निखिल और उसके बीच आ जाए और वह बताने से चूक जाए उसने तपाक से अपनी बात कह दी।
“ब्रेस्ट कैंसर का। भाभी को ब्रेस्ट कैंसर है।”
निखिल ने दरवाजे पर खड़ी कमला को अविश्वास से देखा। मगर उसने भी सिर हिलाकर हामी भरी तो निखिल स्तब्ध रह गया।
“अब भैया। आपको सब संभालना है। इससे पहले की बहुत देर हो जाए, भाभी का इलाज शुरू करना होगा। आप भी कल ही जाकर डॉक्टर से मिल लो तो अच्छा हो। और….”
“और क्या?”
“और भैया, पापा-मम्मी को बताने की हिम्मत हम दोनों में नहीं है। आप ही…”
नव्या ने एक बार भाभी को और एक बार निखिल को देखा फिर अपने कमरे में चली गई।
कमला इस बारे में निखिल से कोई बात नहीं करना चाहती थी मगर उसका जानना बहुत ज़रूरी था। उसने अब तक हुई सारी बातें विस्तार से निखिल को बता दीं। निखिल स्तब्ध सा सुनता रहा जैसे उसे लकवा मार गया हो।
अपनी बात पूरी करने के बाद कमला में निखिल के सवालों का जवाब देने का साहस नहीं बचा था इसलिए चुपचाप तेज़ी से लाइट बंद कर के वह पलंग पर बैठे निखिल के दाईं ओर लेट गई। निखिल ही कहाँ कुछ पूछने की स्तिथि में था। कुछ देर यूँ ही अँधेरे में बैठे रहने के बाद वह भी लेट गया।
थका तो था ही, शारिरिक और मानसिक, दोनों तौर पर। सो नींद आ ही गई। कच्ची नींद में ही निखिल ने आदतन कमला की कमर में हाथ डालकर उसे करीब खींच लिया और हमेशा की तरह हाथ दाएँ स्तन पर जा टिकाया।
मगर हाथ वहाँ पहुँचते ही निखिल सचेत हो गया और उसने झटके से अपना हाथ ऐसे वापस खींच लिया जैसे बिजली की नंगी तार छू ली हो। नींद में भी निखिल को यह लगा कि वहाँ छूने से उसे भी कैंसर हो जाएगा।
वह सीधा होकर लेट गया और सोचने लगा कि अभी उसे कैंसर हो जाए तो?
तो उसे सबके सपोर्ट की कितनी ज़रूरत पड़ेगी। अरे ज़रा तेज़ बुखार होता है तो घर-भर के लोग जबतक सेवा में नहीं लग जाते , बुखार ठीक ही नहीं होता। फिर कमला की लड़ाई तो अभी लम्बी चलनेवाली है। उसे कितने सपोर्ट की ज़रूरत है। क्या हुआ, क्यों हुआ, कौन दोषी है इस बीमारी के लिए, किसपे खीझ निकाली जाए, इसके बजाय क्यों न इस बीमारी का सामना किया जाए। कल ही मम्मी-पापा से भी बात कर उन्हें समझाता हूँ कि उनके सपोर्ट की कितनी ज़रूरत है इस वक़्त।
यही सब सोचते हुए निखिल उठा और बाथरूम चला गया। निखिल तो थोड़ी देर के लिए सो भी गया था लेकिन कमला की आँखों में नींद कहाँ थी। वह तो एक ओर लेटे-लेटे निखिल की सब हरक़तें नोट कर रही थी और नोटकरके भीतर ही भीतर टूटती जा रही थी, और टूटती जा रही थी।
निखिल बाथरूम से लौटा तो जैसे कुछ और ही बन गया था। बिस्तर पर लेटते ही उसने दोनों हाथ कमर में डालकर कमला को अपनी ओर खींच लिया और कसकर खुद से चिपका लिया। फिर दोनों हाथ उसके सीने पर बाँध दिए। वहीं कमला के लिए अब खुद पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था। बहुत कोशिशों के बावजूद वह फूट-फूटकर रोने लगी। उसने भी निखिल के बंधे हाथों को अपने दोनों हाथों से कसकर थाम लिया और अपने ऊपर काबू करने के चक्कर में उसने उसके आँसुओ से गीले, निखिल के बालों भरे हाथों में अपने दाँत गड़ा दिए।
काफी देर तक वे इसी तरह लेटे रहे।
******
दो सर्जरियों के बाद कमला का सीना सपाट हो चुका था और अब कमला की कीमो थेरेपी शुरू हो चुकी थी जिसने उसका सिर धीरे-धीरे सपाट करना शुरू कर दिया था। कभी-कभी तो आईने में खुद को देख वह भी डर जाती थी। जाने बच्चों पर क्या असर होता होगा उसके इस रूप का।
इस कीमो ने तो उसकी जान सुखा डाली थी। इतनी भी ताकत नहीं बचती थी कि बच्चों को देख सके। ऐसे में नव्या ने बच्चों को लगभग पूरा-पूरा सँभाल लिया था। बच्चे भी जान गए थे कि माँ की तबियत ठीक नहीं थी इसलिए चुपचाप अपनी उम्र से अधिक बड़े हो गए और अपना ज्यादातर काम खुदी करने लगे।
यही सब सोचती-सोचती जब कमला नहाकर निकली तो उसने देखा कि नव्या बच्चों को स्कूल भेजकर, उनके बिखरे हुए खिलौने-कॉपी-किताब समेट रही थी। नव्या को उम्र से पहले माँ बनी देख कमला की आँखों में आँसू आ गए। वह वहीं थम गई और अपने विचारों में खो गई। आठ साल पहले जब शादी कर के आई थी तो नव्या बच्ची ही थी। नाड़ा बाँधना तक कमला से सीखा और आज…
कमला को ऐसे बुत बने देख नव्या घबरा गई।
“क्या हुआ भाभी सब ठीक तो है?”
कमला की तंद्रा टूटी।
“हाँ-हाँ, सब ठीक है। बस देख रही थी कि मेरी बीमारी के दौरान तुम कितना बड़ा सहारा बनी हो मेरे लिए। पहले मेरा जबर्दस्ती इलाज करवा कर मेरी जान बचाई और अब बच्चों का सारा बोझ अपने सिर उठा लिया।”
“अरे ऐसा क्यूँ सोचती हो भाभी। आपने भी तो कितना कुछ किया है मेरे लिए। मुझे याद है एक बार होली के समय मुझे तेज़ बुखार चढ़ा था। सब लोग सो जाते थे, मम्मी भी। मगर आप सारी-सारी रात मेरे बगल में बैठी रहती थी। एक पलक भी नहीं झपकाती थी जैसे आपके सो जाने से मेरा बुखार ही नहीं उतरेगा। फिर सुबह काम पर लग जाती थी। यह आसान काम था क्या।”
“फिर भी…ननद हो तुम मेरी।”
“ओफ्फो भाभी, अब सास-ननद वाली बात कहाँ से आ गई। यही तो विडंबना है इस देश की। यहाँ की औरतें ही एक-दूसरे का सहारा बनने की बजाए, दुश्मन बनी रहती हैं। यहाँ हर औरत प्रसव पीड़ा से गुजरती है मगर हर दूसरी औरत की प्रसव पीड़ा को नाटक बताती है। क्या होगा इस देश की औरतों का, भगवान जाने।”
“अच्छा ही होगा जबतक तुम जैसी ननद है।”
“और जबतक आप जैसी भाभी है।”
दोनों हँसकर गले लगकर अलग हो गए जैसे हल्के हवा के झोंके से फूलों से लदी दो डालियां गले लगकर अलग हो जाती हैं।
**********
कमला का सारा इलाज पूरा हो गया था। सब सर्जरियाँ और कीमो भी पूरा हो गया था। अब बस समय-समय पर रूटीन चेक-अप चल रहा था।
दाएँ करवट लेटी-लेटी अंधकार में आँखे गड़ाए कमला यही सोच रही थी कि उसने इन दस महीनों में क्या-क्या गँवाया और क्या-क्या पाया। सिर के बाल, सेहत, सीने का स्त्रीधन, बच्चों से दूरी, बिज़नेस के लिए निखिल द्वारा इकठ्ठा किया इतनी मेहनत का पैसा और तो और नव्या कहती है कि अब विम्मी-सिम्मी भी इस रोग के खतरे में आ गई हैं, उन पर भी नज़र रखनी पड़ेगी।
मगर दूसरी ओर अपनों का साथ मिला, बच्चियां पहले से ज्यादा समझदार हो गईं, पति के सिर से फालतू बिजनेस के भूत उतर गए और तो और सिर के बाल भी वापस आने लगे हैं। अगर कुछ सालता है तो बस ये खाली-खाली सीना जो कभी स्त्री होने के भार से झुका रहता था।
तभी अचानक नींद में सोए निखिल ने बड़े दिनों बाद फिर कमला की कमर में आदतवश हाथ डालकर अपने पास खींच लिया। इतने दिनों से जाने कैसे निखिल का शरीर अपनी इस हरकत से दूर था। यह पहली बार था जब निखिल का हाथ उसके खाली सीने पर गया था। कच्ची नींद में भी हाथ टोटल कर कुछ ढूंढ रहे थे जो अब वहाँ नहीं था।
इस अजनबी एहसास ने निखिल को चौंका दिया और उसकी नींद खुल गई जबकि कमला को इस खालीपन के एहसास ने भीतर तक झकझोर दिया और उसकी आँखों से दो बूँद आँसू निकलकर निखिल के हाथों पर गिर गए।
निखिल ने कमला का कंधा पकड़कर उसे अपनी ओर मोड़ दिया और उसकी ठुड्डी पकड़कर मुँह अपनी ओर उठाते हुए कहा।
“कम से कम तुम मेरी और बच्चों की ज़िंदगी में तो हो। बाकी कुछ रहे न रहे।”
कमला ने यह आश्वासन पाकर अपना सिर निखिल के बालों भरे सीने पर रख दिया।
“देखो मेरे पास भी नहीं है।”
कमला हँस दी और निखिल ने उसे बाहों में भर लिया।
*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com

2 thoughts on “खाली-खाली

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी !

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया।

Comments are closed.