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गोल्डन गर्ल स्वप्ना

हम गोल्डन गर्ल स्वप्ना और उनकी चाहत की बात तो करने ही वाले हैं, पर सबसे पहले हम उन 54 खिलाड़ियों को कोटिशः बधाइयां देना चाहेंगे, जिन्होंने पिछले 11 दिनों में एशियाड गेम्स, जकार्ता में पदक जीतकर अपना व देश का मान बढ़ाया है. इन उन 54 खिलाड़ियों में से 11 गोल्ड, 20 सिल्वर और 23 कांस्य पदक विजेता हैं.
बुधवार को भारत के खाते में कुल 4 मेडल आए। हेप्टाऐथलीट स्वप्ना बर्मन ने अपने जज्बे का बेजोड़ नमूना पेश करके स्वर्ण पदक जीता, त्रिकूद के ऐथलीट अरपिंदर सिंह ने अपेक्षानुरूप प्रदर्शन करके सोने का तमगा हासिल किया.

18वें एशियाई खेलों में 11वां दिन भारत के लिए खुशियों भरा रहा. ट्रैक ऐंड फील्ड इवेंट में भारत ने एक के बाद एक लगातार 2 गोल्ड मेडल जीते. पहला गोल्ड पंजाब के ऐथलीट अरपिंदर सिंह ने ट्रिपल जंप में जीता. इसके बाद महिला हेप्टैथलॉन में स्वप्ना बर्मन ने कमाल का प्रदर्शन करते देश को 11वां गोल्ड मेडल दिला दिया.

पंजाब के अमृतसर के रहने वाले अरपिंदर की ट्रिपल जंप (16.77 मीटर) उन्हें गोल्ड मेडल जितवाने के लिए काफी रही. भारत ने एशियन गेम्स के तिहरी कूद में 48 साल बाद कोई स्वर्ण पदक जीता है. इससे पहले महिंदर सिंह ने 1970 के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था. यहीं पर हम आपको यह भी बताना चाहेंगे, कि 20 साल बाद भारतीय महिला हॉकी टीम SF में चीन को दी मात देकर फाइनल में पहुंची है. अब बात स्वप्ना और उनकी चाहत की.

स्वप्ना बर्मन ने ऐथलेटिक्स में देश को पांचवां गोल्ड मेडल दिलवाया है. बुधवार को यहां एशियाई खेलों की हेप्टाथलन में गोल्ड पदक जीतकर नया इतिहास रचा. वह इन खेलों में सोने का तमगा जीतने वाली पहली भारतीय हैं. इक्कीस वर्षीय बर्मन ने दो दिन तक चली सात स्पर्धाओं में 6026 अंक बनाए. इस दौरान उन्होंने ऊंची कूद (1003 अंक) और भाला फेंक (872 अंक) में पहला तथा गोला फेंक (707 अंक) और लंबी कूद (865 अंक) में दूसरा स्थान हासिल किया था.

इससे आप जान गए होंगे, कि हेप्टाथलन में गोल्ड पदक जीतकर नया इतिहास रचना कितना मुश्किल है. इसके लिए आपको एक नहीं, अनेक स्पर्धाओं में महारत हासिल करनी पड़ती है. ऊंची कूद, लंबी कूद, भाला फेंक और गोला फेंक.

 

इतनी सारी स्पर्धाओं की बात सुनकर हमें अपने बचपन की बात याद आ रही है. स्कूल के दिनों में कोई ऐसा खेल नहीं था, जिसमें हमने कोई पार्ट न लिया हो. खो-खो, कबड्डी, आटिया-पाटिया, बेस बॉल, क्रिकेट, सादी दौड़, बाधा दौड़, सुई-धागा दौड़, चम्मच दौड़, स्लो साइकिलिंग, फास्ट साइकिलिंग, बैडमिंटन, ऊंची कूद, लंबी कूद, भाला फेंक, डिस्कस फेंक, गोला फेंक आदि सभी खेलों में भाग लिया था और लगभग हर खेल में पुरस्कार हासिल किए थे. इसका कारण शायद यह था, कि एक तो मुझे हर नई चीज सीखने और आजमाने का शौक था, इसलिए मैं सीख भी जल्दी जाती थी, दूसरे लंबाई अधिक होने के कारण ऊंची कूद, लंबी कूद, भाला फेंक, डिस्कस फेंक, गोला फेंक आदि खेलों में मुझे अध्यापकों द्वारा बहुत प्रोत्साहन भी दिया गया था. खैर हम बात कर रहे हैं स्वप्ना की चाहत की.

 

स्वप्ना के दोनों पैरों में छह उंगलियां हैं, स्वप्ना ने मेडल जीतने के बाद कहा, ‘मैंने यह पदक नैशनल स्पोर्ट्स डे के मौके पर जीता है, तो यह मेरे लिए काफी खास है. मैं सामान्य जूते ही पहनती हूं जिसमें पांच उंगलियों की जगह होती है. ट्रेनिंग के दौरान इसमें काफी दर्द होता है. इसमें काफी परेशानी होती है.’

उनसे जब पूछा गया कि क्या वह किन्हीं कंपनियों को उनके लिए कस्टमाइज जूते बनाने के लिए कहना चाहेंगी, तो उन्होंने कहा, ‘बिलकुल, इससे मेरा काम आसान हो जाएगा.’

 

बर्मन के पिता कभी रिक्शा चलाया करते थे. वह पक्षाघात के चलते बिस्तर पर थे. स्वप्ना ने दो दिनों में हुए सात इवेंट में अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 6026 अंक हासिल किए. उन्होंने कहा कि उन्होंने दांत में इंफेक्शन से निपटने के लिए दाएं गाल पर टेप लगाकर इवेंट्स में भाग लिया. इवेंट से पहले वह घुटने की चोट से भी उबर रही थीं.

 

हर बाधा से उबरकर देश को मान दिलाने वाली गोल्डन गर्ल स्वप्ना बर्मन को हमारी कोटिशः बधाइयां व शुभकामनाएं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “गोल्डन गर्ल स्वप्ना

  • लीला तिवानी

    स्वप्ना, आपकी चाहत के बारे में इतना ही कहना चाहेंगे, कि आपके लिए कस्टमाइज जूतों की सख्त जरूरत है. हम जानते हैं, कि पैरों के न केवल जूते जरूरी हैं, बल्कि आरामदायक जूते अधिक जरूरी हैं. इनके बिना भी आपने इतनी कठिन तपस्या करके इतनी कठिन दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल किया, यह आपके लिए, हमारे लिए और देश के लिए अत्यंत गर्व की बात है.

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