कविता

गुरुर होते देखा है !

दिल को अपने ही हाथों मजबूर होते देखा है।
न चाहते हुए भी प्यार से दूर होते देखा है।

न करनी थी वो गलतियों जो हो चुकी हैं अब,
उन छोटी गलतियों को भी नासूर होते देखा है।

इक छोटे ज़र्रे को क्यों दोष देते हो तुम यूंही,
कितने ज़र्रों को हमने मशहूर होते देखा है।

हँसते थे जो लोग कभी अपनी सूरत पे इस तरह,
आज उन्हीं चेहरों को इतना बेनूर होते देखा है।

रात दिन बस प्यार की ही सोच रहे नहीं जायज़ ,
वतन की खातिर जीए ऐसे वीरों पे गुरुर होते देखा है।

कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |