सामाजिक

बच्चे क्या चाहते हैं ?

बच्चों तो स्नेह व दुलार के भूखे होते हैं। वात्सल्य भरा स्पर्श और  आलिंगन ही उनके लिए काफी है। बच्चों के प्रति हमें अपना वात्सल्य दर्शाना अति आवश्यक है। एक सौम्य आलिंगन थोड़ा सा प्रोत्साहन, प्रशंसा, अनुमोदन यहाँ तक की एक हल्की सी मुस्कान ही बच्चों की खुशहाली व आत्म विश्वास की बढ़ोतरी के लिए बहुत सहायक साबित हो सकती है। चाहे आप उनसे कितना ही नाराज़ क्यों ना हों उन्हें हर दिन यह बताएं कि हम उनसे कितना प्यार करते हैं।उन्हें प्यार से गले लगायें और माथे पर प्यार करें । उन्हें यह बताएं कि चाहे कुछ भी हो जाये हमारा प्रेम उनके प्रति कभी कम नहीं होगा। उनकी  सराहना करना चाहिए।बच्चों की प्रशंसा एक अच्छे माता-पिता बनने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम सदैव यही चाहते कि बच्चे अपनी उपलब्धियों पर गर्व और अपने बारे में अच्छा महसूस करें। यदि हम अपने बच्चों में यह विश्वास नहीं जगाते कि वे अपने दम पर दुनिया में निकल कर कुछ हासिल कर सकते हैं।तो वे कभी स्वयं को आत्मविश्वासी व साहसी बन पाने के लिए सशक्त महसूस नहीं करेंगे। जब भी वे कुछ अच्छा करें। तो उन्हें यह बतायें कि हमने उनकी बात पर गौर किया है और उनके इस काम पर हम गर्व करते हैं।
बच्चों की गलतियों पर ध्यान देने से ज्यादा उनकी उपलब्धियों, टेलेंट और उनके अच्छे व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे उन्हें ये जाहिर होगा कि हम उनमें उनकी अच्छी बातें भी देखते हैं।
इस चीज़ की आदत डालें कि हम अपने बच्चों को जितनी नकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं। उससे कम से कम तीन गुना ज्यादा प्रशंसा करें। तथापि बच्चों को यह बताना अनिवार्य है कि वे कहाँ गलत हैं। उनमें स्वयं के लिए सकारात्मक विचार जगाना भी महत्वपूर्ण है।
यदि वे इन सब चीज़ों को समझने लायक बड़े नहीं हुए हैं। तो उनकी प्रशंसा ढेर सारी वाहवाही व प्यार देकर करना चाहिए। शौचालय का सही प्रयोग से ले कर अच्छे अंक लाने तक सभी चीज़ों के लिए प्रोत्साहित करने से हम उन्हें एक खुश और सफल जीवन व्यतीत करने में मदद कर सकते हैं।
शाबाश ! जैसे ऊपरी वाक्यांशों से बचना चाहिए। इसके बजाय वर्णात्मक प्रशंसा करें जिससे उन्हें साफ़ साफ़ पता चले कि आप सटीक रूप से किस चीज़ की सराहना कर रहे हैं। उदाहरण के लिए आपने अपने मित्र के साथ मिलकर बड़े स्नेह यह कार्य पूरा किया। आपने यह काम बहुत अच्छा किया या खेलने के बाद खिलौनों को साफ़ करके उन्हें अपनी जगह रख कर आपने बहुत शाबासी का काम किया है।
बच्चों की तुलना दूसरों से नहीं करना चाहिए। खासकर भाई बहनों के साथ आपस में बिल्कुल नहीं करना चाहिए। हर बालक अलग एवं अनूठा होता है । उनके इस अनूठेपन को प्रेम से स्वीकार करना चाहिए। बच्चे को उसकी पसंद अनुसार अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। विफलता बच्चों के मन में अपने लिए हीन भावना जगा सकती है।  यदि हम उनके व्यवहार में सुधार लाना चाहते हैं। तो उनके पास बैठ कर उनके लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उनकी शर्तों के अनुसार समझाना चाहिए इसके लिए उन्हें अपनी बहन-भाई या पड़ोसी की तरह काम करने का उदाहरण नहीं देना चाहिए। इससे उनमें हीनभावना के बजाय स्व की भावना विकसित होगी।
बच्चों की तुलना आपस में करने से उनमें आपस में अपने भाई बहनों के प्रति प्रतिद्वंदिता विकसित हो सकती है। हमें अपने बच्चों के बीच प्रेम सम्बन्धों का पोषण करना चाहिए ना कि प्रतियोगिता का।
पक्षपात से बचना चाहिए।सर्वेक्षण से पता चला है कि अधिकतर माता पिता का कोई एक पसंदीदा होता है। परन्तु अधिकांश बच्चों के हिसाब से वे अपने माता पिता के प्रिय हैं यदि बच्चे आपस में झगड़ रहे हैं। तो किसी एक का पक्ष ना लें, बल्कि निष्पक्ष और तटस्थ निर्णय लें।
प्रत्येक बच्चे को खुद के लिए ज़िम्मेदार बनाकर प्राकृतिक जन्म क्रम की प्रवृत्ति से उबरें । बड़े बच्चों पर छोटों की जिम्मेदारी डालने से सहोदर स्पर्धा पनपती है।जबकि उन्हें खुद के लिए ज़िम्मेदार बना कर हम उनके व्यक्तित्व और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करते हैं।
अपने बच्चों की बातें ध्यान से सुनना चाहिए । बातचीत का दोनों तरफ से चलना बहुत आवश्यक है। हम सिर्फ नियम बनाने के लिए नहीं हैं अपितु अपने बच्चों की समस्याओं को सुनने के लिए भी हमें मौजूद होना चाहिए । हमें बच्चों में दिलचस्पी अभिव्यक्त करना चाहिए। उनके जीवन में शामिल होना चाहिए। हमें ऐसा माहौल बनाये रखना चाहिए कि बच्चे अपनी समस्याओं के साथ निसंकोच हमारे पास आ सकें।फिर चाहे परेशानी कितनी भी छोटी या बड़ी क्यों न हो।
हमें अपने बच्चों की बातें पूरे मन से सुनने की आदत डालना चाहिए। जब वो हमसे बात कर रहे हों तो उनकी तरफ देखना चाहिए और उन्हें ये दिखाना चाहिए कि हम उनकी बातें पूरे ध्यान से सुन रहे हैं। हमें बीच बीच में अपना सर हिलाकर हूँ बोलकर अच्छा में समझ गई या समझ गया बोलकर या फिर क्या हुआ बोलकर करना चाहिए। जब हमारे बच्चे हमको कोई बात बता रहे हों तो अपनी बात कहने या कोई उत्तर देने की जल्दी नहीं करना चाहिए। जब बच्चे की बात पूरी हो जाए तो उनकी ही बातों को बीच में से उठाकर फिर अपना उत्तर देना चाहिए। जैसे अच्छा तो आपने अपनी फ्रेंड के साथ चॉकलेट शेयर नहीं की। लेकिन ये तो अच्छी बात नहीं है। आपको अपने फ्रेंड के साथ शेयर करना चाहिए थी।
आप चाहें तो दिन का एक समय अपने बच्चों की बातों के लिए निश्चित कर सकते हैं । यह सोने से पहले, नाश्ते के दौरान अथवा स्कूल से लौटते वक्त हो सकता है। पर इस समय में अपना पूरा समय दें और किसी और काम जैसे बार बार फ़ोन चेक करना आदि से डिस्ट्रैक्ट न हों।
हमें अपने बच्चों के ज्ञान पर शक नहीं करना चाहिए। जब भी कुछ गलत या सही होता है तो उसे देखने का और समझने का उनका अपना नजरिया होता है। इसलिए उनका दृष्टिकोण समझने की और उनकी बात को सुनकर उनकी सोच को समझने की कोशिश करना चाहिए।
यदि बच्चे कहते हैं कि उन्हें हमसे कुछ कहना है तो इस बात को गंभीरता से लें और सब काम छोड़ कर उनकी बात सुनना चाहिए या फिर एक ऐसा समय सुनिश्चित करना चाहिए जब हम उनकी बात को वास्तव में ध्यान से सुन सकते हैं।
अपने बच्चों के लिए समय निकालना चाहिए। उनकी बात को दबाना अथवा रोकना नहीं चाहिए।  हमें उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि  उनके साथ बिताया गया समय बेहद ख़ास है। ना कि ऐसा जैसे उन्हें आपके साथ वक़्त बिताने के लिए मजबूर किया गया हो।
जब हम अपने बच्चे के साथ समय बिता रहे हों तो थोड़ी देर के लिए सभी टेक्नोलॉजी से दूर हो जायें। अपने फ़ोन को दूर रख दें और पूरा समय बच्चे को दें बजाय अपने व्हाट्सएप्प मेसेजेस, मेल या फेसबुक को चेक करने के।
प्रत्येक बच्चे के साथ व्यक्तिगत रूप से वक़्त बिताएं । यदि एक से अधिक बच्चे हैं। तो अपने समय को उन दोनों के बीच सामान रूप से विभाजित करने की कोशिश करना चाहिए।
अपने बच्चों को सुनना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए। साथ ही हमारे बच्चे अपने जीवन के साथ क्या करना चाहते हैं उसका भी आदर करना चाहिए। परन्तु सदैव यह याद रखना चाहिए कि हम उनके माता पिता हैं। बच्चों को सीमाओं में बांधने की भी जरुरत है । जिन बच्चों को अपने मन मुताबिक काम करने की अनुमति दी जाती है और जिनकी हर चाहत की पूर्ति होती है।वे अपने व्यसक जीवन में समाज के बनाये नियमों का पालन करने में संघर्ष करते हैं। यदि हम अपने बच्चे कि हर मांग को पूरा नहीं करते तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम बुरे माता पिता हैं। हम ना भी कह सकते हैं। पर ना कहने का एक उचित कारण व अन्य विकल्प भी साथ में देना चाहिए।
बच्चों की रुचि अनुसार प्ले ग्राउंड, म्युसियम या लाइब्रेरी जाने के लिए दिन निश्चित करना चाहिए। स्कूल फंक्शन्स में शामिल होना चाहिए। उनके साथ होम वर्क करना चाहिए। बच्चे क्लास में कैसा परफॉर्म कर रहे हैं यह जानने के लिए स्कूल में रखी जाने वाली पेरेंट्स टीचर मीटिंग्स (PTM) में अवश्य जाना चाहिए।
बच्चों के ख़ास लम्हों में उपस्थित रहना चाहिए। हम अपने काम में व्यस्त हो सकते हैं। परन्तु अपने बच्चों के जीवन के ख़ास लम्हों के लिए हमेशा वक़्त निकालना चाहिए। चाहे वो एक कविता सुनाना हो या फिर स्नातक स्तर की पढ़ाई हो। याद रखें की वक़्त तेज़ी से बढ़ता है और इससे पहले की हमें पता चले बच्चे बड़े होकर स्वतंत्र हो जायेंगे । हमारे बॉस को याद रहे ना रहे की आप एक मीटिंग में उपस्थित नहीं थे पर हमारे बच्चों को यह निश्चित रूप से याद रहेगा कि आप उस प्ले में शामिल नहीं थे जिनमें उन्होंने भाग लिया था। हालाँकि हमें अपने बच्चों के लिए हर चीज़ त्यागने की आवश्यकता नहीं है। अपितु यह प्रयास सदैव करना चाहिए की जरूरी मौकों पर हम अवश्य ही शामिल हो पाएं ।
अगर हम अपने बच्चे के स्कूल के पहले दिन या अन्य महत्वपूर्ण दिवस पर व्यस्त रहते हैं। तो इस बात का अफ़सोस हमको जीवन पर्यन्त रहेगा और हम यह कदापि नहीं चाहेंगे की हमारा बच्चा अपने कॉलेज के आखिरी दिवस को इस प्रकार याद रखे कि उस दिन उसके माता पिता मौजूद नहीं थे।
अच्छा अनुशासक बनना चाहिए।       उचित नियमों को लागू करना चाहिए। ऐसे नियम बनाना चाहिए जो कि हर व्यक्ति को खुशहाली व उत्पादक जीवन की ओर अग्रसर करे ना कि हमारे आदर्श व्यक्ति के नियमों का प्रतिरूप हो।महत्वपूर्ण यह है की ऐसे नियमों व दिशा का निर्देशन हो जो बगैर सख्त लगे हमारे बच्चे को विकसित होने में मदद करे ना कि उनको ऐसा लगे कि वे एक कदम भी बिना कुछ गलत किये नहीं ले सकते। आदर्श तौर पर हमारे बच्चों के दिल में हमारे नियमों से जितना डर है उससे अधिक हमारे लिए प्यार होना चाहिए।
हमें अपने नियमों को स्पष्ट रूप से सामने रखना चाहिए। बच्चों को अपने कार्यों के परिणाम का बोध होना चाहिए । यदि हम उन्हें सजा देते हैं तो इस बात का खयाल रखें की बच्चों को सजा का कारण और गलती दोनों की समझ हो।अगर हम ही सपष्ट रूप से यह नहीं समझ पाते हैं कि उनकी गलती कहाँ है। तो दंड का वो प्रभाव नहीं पड़ेगा जो हम चाहते हैं।
सुनिश्चित करें कि हम ना केवल उचित नियमों को लागू करते हैं अपितु यह कि आप स्वयं भी उसका यथोचित पालन करना चाहिए। कठोर दंड, मामूली शरारतों के लिए भीषण दंड या किसी भी रूप से बच्चों को शारीरिक चोट पहुंचाने वाले सजाओं से दूर ही रहना चाहिए ।
अपने क्रोध को जितना संभव हो नियंत्रित रखना चाहिए। शांत और विवेकी रहना अनिवार्य है जब हम अपने नियमों की व्याख्या या उनका पालन करवा रहे हों। तब हम यह चाहेंगे की हमारे बच्चे हमें गंभीरता से लें।ना की हम से डरें और हमें अनुचित समझें । जाहिर है कि यह एक चुनौती साबित हो सकता है। विशेष रूप से तब जब हमारे बच्चे नाटक कर रहे हों या हमें क्रोधित कर रहे हों, पर जब भी हमें लगे कि अब हम अपनी आवाज़ उठाए बिना नहीं रह पाएंगे। तो एक छोटा सा विराम लें या अपने प्रतिक्रिया से बच्चों को यह महसूस करने दें की हम उनसे नाराज़ हैं।
हम सब कभी ना कभी अपना मिज़ाज खो देते हैं और नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं । यदि हम कुछ ऐसा कर या कह देते हैं। जिसका हमको अफ़सोस है, तो अपने बच्चों से उस बात की माफ़ी मांग ले चाहिए जिससे उन्हें यह पता चले कि हमसे गलती हुई है । यदि हम अपनी गलती के बाद सामान्य व्यवहार करते हैं, तो वे बाद में इसी को उदाहरण मान उसकी नकल करने की कोशिश करेंगे।
हर समय एक जैसे नियम लागू करना चाहिए और बच्चों की जिद्द या विरोध के अधीन हो कर नियमों में अपवाद लाने के प्रलोभन से बचना चाहिए। यदि हम अपने बच्चे को मन मर्जी सिर्फ इसीलिए करने देते हैं कि वे चिड़चिडे़ होकर झल्ला जायेंगे तो इसका अर्थ यह होगा कि हमारे नियमों की बुनियाद कमज़ोर है और उनमें कोई भी फेर बदल कर सकता है। यदि हम अपने को एक से अधिक बार यह कहता महसूस करते हैं कि अच्छा, पर केवल एक बार तो हमको अपने बच्चों के लिए और अधिक सुसंगत नियम बनाने की आवश्यकता है।
अगर हमारे बच्चे महसूस करते हैं कि हमारे नियमों में अकसर फेर बदल हो सकता है।तो वे कभी भी नियमों पर बने रहने के लिए प्रोत्साहित नहीं होंगे ।
पति पत्नी आपस में मिलकर संयुक्त रूप से नियम बनाएं।यह जरूरी है कि बच्चे को अपने माता पिता के एकजुटता की अनुभूति हो दो लोग जो एक बात के लिए साथ में “ हाँ ” या “ ना “ कहेंगे । अगर बच्चों को ऐसा लगता है कि माँ हमेशा हाँ कहेगी और और पिता हमेशा ना, तो वे यह समझ सकते हैं कि कोई एक बेहतर है या दूसरे की तुलना में किसी एक से चालाकी कर आसानी से काम निकलवाया जा सकता है। उन्हें हम पति पत्नी एक इकाई के रूप में नज़र आने चाहिए ताकि हमारे पालन में व्यवस्था बनी रहे और आप कठिन परिस्थितियों से दूर रह सकें। ये सामान्य है कि कई बार पति पत्नी बच्चों की परवरिश के मामले में सहमत नहीं हो पाते ।
इसका मतलब यह नहीं है की हम  पति पत्नी बच्चों से जुड़े बातों पर 100% सहमत हों, परन्तु इसका अर्थ यह अवश्य है कि एक दूसरे के खिलाफ खड़े होने के बजाय, साथ मिलकर समस्याओं का हल ढूँढा जाये ।
पति पत्नी को आपस में बच्चों के सामने कदापि नहीं झगड़ना चाहिए। अगर बच्चे सो रहे हैं तो आहिस्ता बहस करें। बच्चे माता पिता की कलह सुन असुरक्षित व भयभीत महसूस करते हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे भी इसी प्रकार से आपस में बहस करना सीख जायेंगे । उन्हें यह दिखाना चाहिए कि मतभेद को शांतिपूर्ण तरीके से चर्चा करके भी मिटाया जा सकता है ।
घर में व्यवस्था बना कर रखना चाहिए। हमें बच्चों को महसूस कराना चाहिए कि उनके घर और जीवन में तर्क और अनुक्रम मौजूद हैं । यह उन्हें शांत और सुरक्षित महसूस कराएगा जिससे वे घर और घर के बाहर दोनों जगह ही सुखी जीवन बिता पायेंगे इन तरीकों से हम बच्चों के जीवन में क्रम या व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं।
रात को सोने का वक़्त के लिए नियम निर्धारित करना चाहिए। ऐसा करने से बच्चों को वास्तव में माता पिता द्वारा किये गए प्यार व परवाह की अनुभूति होती है । वे उन सीमाओं पर दुखी हो सकते हैं, मगर अन्दर से वे अपने माता पिता के मार्गदर्शन व चिंता की प्रशंसा करेंगे ।
उन्हें रोज़ मर्रा के काम में शामिल करवा कर जिम्मेदारी देना चाहिए और प्रोत्साहित करना चाहिए। इन कामों को अच्छे से पूर्ण करने के फल स्वरुप उन्हें कुछ इनाम भी देना चाहिए और काम ना करने के सजा के रूप में उनके विशेषाधिकार रद्द किये जा सकते हैं । छोटे से छोटा बच्चा भी इनाम और परिणाम के अवधारणा से सीख सकता है । जैसे जैसे हमारे बच्चे बड़े होते हैं उन्हें और ज्यादा जिम्मेदारी सौपें और उसके साथ ही उसे पूरा करने या अनदेखा कर देने के लिए उचित पुरस्कार या दंड भी दें। उन्हें सही गलत का फर्क सिखाना चाहिए। अगर हम धार्मिक हैं तो जिसमें हम आस्था रखते हैं उस धार्मिक संस्थान से परिचित करवाना चाहिए। अगर आप नास्तिक हैं तो यह पथ अपनाने के पीछे अपना तर्क उन्हें समझाना चाहिए।कोई भी स्तिथि हो बस पाखंडी नहीं होना चाहिए। हम इस बात के लिए तैयार रहें कि आपके बच्चे यह कह सकते हैं कि “आप अपने उपदेश का स्वयं पालन नहीं करते” ।
हम अपने बच्चों के व्यवहार की आलोचना करें न कि अपने बच्चे की। हमें अपने बच्चे को यह सिखाना चाहिए कि वे अपने जीवन में जो भी हासिल करते हैं वह उनके व्यवहार की वजह से है। बजाय इसके कि जीवन में एक ही तरह का व्यक्ति बन कर अटक जाएं । उन्हें महसूस करवाएं कि उनके व्यवहार में सुधार की भरपूर गुंजाइश है ।
अगर हमारा बच्चा हानिकारक और द्वेष पूर्ण तरीके से काम करता है तो उन्हें सख्ती से बताएं कि उनका यह “व्यवहार” अप्रिय और अस्वीकार्य है और उन्हें उसका विकल्प भी बताएं । इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल ना करें जैसे “तुम बुरे हो ।” इसके बजाय आप कुछ ऐसा कह सकते हैं , ”अपका यह मतलबी व्यवहार बहुत गलत था ।“ उन्हें वजह बताएं कि क्यों उनका व्यवहार गलत है ।
बच्चों को उनकी गलती बताते वक़्त दृढ़ता के साथ साथ नम्र होना भी जरूरी है । अपनी उम्मीद बताते वक़्त क्रोधित होने के बजाय गंभीर होना जरूरी है ।
सार्वजनिक अपमान से बचें । अगर वे सबके बीच दुर्व्यवहार करते हैं, तो उन्हें अकेले में ले जाकर समझाना चाहिए।
हमें चरित्र निर्माण में अपने बच्चे की मदद करना चाहिए।
अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा देना चाहिए। अपने बच्चों को बताएं की अलग होना कोई बुरी बात नहीं और यह कि हमेशा झुंड के अनुसार चलना भी उचित नहीं है । उन्हें सही गलत के बीच का फर्क बचपन से ही बताना चाहिए ताकि वे खुद के फैसले लेने में सक्षम हो पायेंगे। बजाय इसके कि हर बात दूसरों से सुनकर उसका पालन करें । हमेशा ध्यान रखें कि हमारा बच्चा हमारा विस्तारण नहीं है । वे एक अलग व्यक्ति हैं जो हमारी देखभाल में हैं, ना कि एक मौका खुद के जीवन को उनके माध्यम से जीने का है।
जब हमारे बच्चे खुद के निर्णय लेने लायक बड़े हो जाएँ। तो उन्हें स्वयं ये चयन करने के लिए प्रोत्साहित करें कि वे कौनसी पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेना चाहते हैं या वे किन दोस्तों के साथ खेलना पसंद करते हैं । जब तक आपको ऐसा ना लगे कि वो गतिविधि बहुत खतरनाक या उनके द्वारा चयन किया गया मित्र कुसंगत है, तब तक अपने बच्चों को अपने चुनाव का परिणाम खुद समझने देना चाहिए।
बच्चा हमसे विपरीत स्वभाव का हो सकता है, उदाहरण स्वरुप अंतर्मुखी होना जबकि आप बहुर्मुखी हैं, इस अवस्था में वे हमारे द्वारा बनायी गई नियम शैली समझने के लायक नहीं बन होते हैं। वे खुद के अनुसार खुद के लिए निर्णय लेना चाहते हैं।
बच्चों को यह जानना आवश्यक है कि उनके अपने कार्यों के परिणाम अच्छे हो या बुरे उन्हें स्वयं ही भुगतने पड़ते हैं । ऐसा करने से वे अच्छे निर्णय निर्माता व समस्या निवारक बन पायेंगे जो उन्हें स्वतंत्र और व्यस्क जीवन के लिए तैयार करेगा ।
बच्चों को खुद के लिए स्वयं काम करना सीखना चाहिए। वे काम हमें उनके लिए नियमित रूप से नहीं करना चाहिए । हालांकि सोने से पहले एक ग्लास पानी पिलाना उन्हें अच्छी नींद लेने में मदद करेगा, परन्तु ऐसा हमेशा करने से वे सदैव इसकी उम्मीद करने लग जायेंगे ।
अगर आप अपने बच्चों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद रखते हैं तो खुद भी उस व्यवहार या व्यक्तित्व का प्रदर्शन नियमित तौर पर करना चाहिए। जो हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अपनाएं । सिर्फ मौखिक स्पष्टीकरण के अलावा उन्हें उदाहरणों से समझाना चाहिए। बच्चे आमतौर पर वही सीखते हैं जो आसपास देखते और सुनते हैं। जब हम अपने बच्चों को तो विनम्र बनने की शिक्षा दे रहे हैं पर खुद किसी दुकान पर बेज़ोर बहस करते पाए जाते हैं। तो बच्चों पर हमारी बात का कोई असर नहीं होता है।
गलती करना ठीक है परन्तु माफ़ी माँगना या बच्चों को यह दिखाना जरूरी है की वह व्यवहार उचित नहीं था । आप यह कह सकते हैं कि, “माँ तुम पर चिल्लाना नहीं चाहती थी । मैं उस समय बहुत परेशान थी ।“यह अपनी गलती को अनदेखा करने से बेहतर है। अन्यथा बच्चों को वह व्यवहार उचित लगेगा और वे उसे ही अपनाने लगेंगे ।
बच्चों को दान पुण्य की शिक्षा देना चाहते हैं तो बच्चों के साथ शामिल हो जाना चाहिए और उन्हें बेघर आश्रय या अन्य जरूरत मंदों के पास ले जा कर यथोचित सेवा से मदद प्रदान करना सिखाना चाहिए। उन्हें समझिए कि आप परोपकार क्यों कर रहे हैं ताकि उन्हें यह समझ आए कि उन्हें भी मदद क्यों करनी चाहिए। बच्चों से काम में छोटी मोटी मदद ले कर या किसी काम के लिए समय निर्धारित कर के अपने बच्चों को रोज़ मर्रा के कामों से अवगत करवाना चाहिए। बच्चों को कुछ करने का आदेश भले ही ना दें परन्तु उनसे छोटी छोटी मदद अवश्य लें । जितनी जल्दी वे आपकी मदद करना सीख जायेंगे, आगे चल कर उतना ही वे तत्पर रहेंगे।
अगर आप अपने बच्चों में मिल बाँट कर रहने की भावना को बढ़ावा देना चाहते हैं तो सर्वप्रथम यह उदाहरण आप स्वयं अपनी चीज़ों को बच्चों से बाँट कर स्थापित करें।
अपने बच्चों की एकान्तता का आदर करना चाहिए। उनके एकान्तता का सम्मान करें क्योंकि यही हम उनसे अपने लिए भी चाहेंगे। उदाहरण स्वरुप यदि हम अपने बच्चों को यह सिखाते हैं कि आपका कमरा एक निजी स्थान है और उनको वहां आने से पहले अनुमति लेनी चाहिए। तो यही उपदेश आपको उनके कमरे के लिए भी अपनाना चाहिए । उन्हें यह महसूस करवाइए कि अगर कोई उनके कमरे में प्रवेश करता है तो उनके दराजों की छान बीन नहीं करेगा अथवा उनकी डायरी नहीं पढ़ेगा । यह उन्हें खुद के दायरे का सम्मान करने के साथ साथ दूसरों की एकान्तता का सम्मान करना भी सिखायेगा।
यदि हमारे बच्चे हमको उनकी चीज़ों में तांक झाँक करते देख लेते हैं तो उन्हें पुनः हम पर विश्वास करने में कठिनाई हो सकती है ।
एक स्वस्थ जीवन शैली के लिए अपने बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए।यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि हमारे बच्चे पौष्टिक आहार, पर्याप्त व्यायाम एवं रात में भरपूर आराम करते हैं। सकारात्मक एवं स्वस्थ जीवन के लिए प्रोत्साहित करना अनिवार्य है पर यह इतना सख्त भी नहीं होना चाहिए कि बच्चों को यह लगे कि हम उन्हें अपने अनुसार खाने पीने या रहने के लिए मजबूर कर रहे हैं । सलाहकार बनें ना कि तानाशाह । उन्हें स्वस्थ जीवन शैली का मार्ग दिखा कर इसका महत्व एवं अर्थ उन्हें खुद समझने दें ।
उन्हें व्यायाम करने के लिए प्रोत्साहित करने का एक तरीका है कि उन्हें छोटी आयु में ही किसी ऐसे खेल से परिचित करवाना चाहिए। जो उनका मनोरंजन करने के साथ साथ स्वस्थ रखने में भी सहायक हो। सेहतमंद खान पान की आदत बच्चों में छोटी उम्र से शुरू करें । पुरस्कार स्वरुप कैंडीज देने से बच्चों को गलत आदत पड़ सकती है, क्योंकि बड़े होने पर जब वे खुद को इसी चीज़ का दावत देंगे तो यह मोटापे को निमंत्रण देना होगा । अल्पायु से ही उन्हें स्वस्थ नाश्ता करवाना चाहिए। बजाय चिप्स के अंगूर अथवा अन्य कोई पौष्टिक चीज़ का सेवन करवाएं ।
छोटी उम्र में डाली गयी आदतें ही हमेशा उनके साथ रहती हैं । अच्छी आदतों में से कुछ हैं।थाली में परोसा सम्पूर्ण भोजन समाप्त करना एवं एक बार में थोड़ा ही परोसना क्योंकि वे खाना कम होने पर दुबारा तो ले सकते हैं। परन्तु ज्यादा होने पर पुनः उसे उठा कर नहीं रख सकते हैं।
इस प्रकार बच्चे हमसे वो सब कुछ चाहते हैं जो हम उनसे चाहते हैं क्योंकि बच्चे हमारी नकल करते हैं। इसलिए बच्चों को एक अच्छा समझदार बनाने से पहले हमें स्वयं अपने अंदर परिवर्तन लाने की आवश्यकता है।
निशा नंदिनी 
तिनसुकिया, असम

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 nishaguptavkv@gmail.com