कविता

कब तक?

 

वो जिया भी गरीब
वो मरा भी गरीब
वह पीला भी गरीब
वो हरा भी गरीब
उसके हालात भी गरीब थे
उसके जज्बात भी गरीब थे
उसके पूर्वज भी गरीब थे
उसकी आने वाली पीढ़ी भी गरीब है
लेकिन कुसूर
केवल इस गरीबी का नहीं
हुकूमत चलाने वालों का है
विकास के नाम पर घोल बना देते हैं गरीबी का
फिर सत्ता हथियाने के बाद बड़े
इत्मीनान से बनाते हैं बुलबुले
उन गरीबों के
बुलबुले उठ जाते हैं हवा में
अपना अस्तित्व खत्म कर लेते हैं
जमीन पर रह जाती है
चुटकी भर पहचान उनकी
अरे क्या पहचान गरीबी रह जाती है !
आखिर कब तक
हर 5 साल के बाद ?
सवाल वही का वही
आखिर कब तक?

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733