कविता

दिल्ली की आत्मा

सबको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं…..

 

दिल्ली की आत्मा
कह रही है करके क्रंदन,
“होता था एक दिन मेरा
भारत में वंदन।
द्वापर युग में जब मुझे
पांडवों ने किया था निर्मित,
इंद्रप्रस्थ नाम से
थी मैं तब बहुत प्रसिद्ध।
अनेक पुष्पों से
था मेरा तन सुसज्जित,
फलों के वृक्ष हो रहे थे
मेरी कोख में पल्लवित।
निर्झर झरने, नदियों से
हो रहे थे वन सिंचित,
उनके स्फटिक जल पीकर
होते थे पशु, पक्षी तृप्त।
स्वच्छ समीर में श्वास लेकर
सभी रहते थे रोगमुक्त,
पुष्पों की सुगंध से
सांसें होती थी सदा युक्त।
आज इस कलि युग में
नहीं हूं मैं सुरक्षित,
लेकर विष युक्त हवा
रोग से मैं हुई ग्रसित।
मेरी कोख से लेकर जन्म
नहीं मेरी संतानें सुरक्षित,
श्वास रोगों से पीड़ित होकर
हो रहे हैं वे सब विक्षिप्त।
शीतल हवा क्रोधित होकर
धर ली उष्णता का रूप,
सूखी यमुना, गंगा, सरस्वती
बदल ली सबने स्वरूप।
जिसके निर्मल जल एक दिन
पखारती थी मेरे पगों को,
तृप्त हो जाती आत्मा मेरी
पीकर अमृतसम जल को।
प्रसन्न थी बहुत मैं तब
मुक्ति मिली थी अंग्रेजी दासता से,
सुखी रहेगी मेरी संतानें
रहेगी मिलकर साथ मित्रता से।
बनी राजधानी दिल्ली
स्वतंत्र भारतवर्ष की,
मेरे लिए थी यह
बात बहुत ही हर्ष की।
भारत प्रगति के नाम पर
कैसी हुई दिल्ली की दुर्दशा,
मेरे हृदय में छा गई
एक अनंत सी निराशा।
किसने घोला विष हवा में
हूं मैं इस बात से बहुत चिंतित,
कैसी प्रगति की ओर है अग्रसर
सोचे मानव समाज, किंचित।
मेरे ही संतानों की देख दुर्दशा
हुई मैं आज बहुत व्यथित,
किस सुख की कामना में
हो रही है ऐसी दशा निर्मित।
सुख समृद्धि की चाह में
किसी ने रखा ना मेरा ध्यान,
काट कर वनों को
कर रहे इमारतों का निर्माण।
फैल रहा विषैला धुंआ
तीव्रता से मेरे चारों ओर,
समय रहते हो उपचार
तब आएगी पुनः सुहानी भोर।”

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com