गीतिका/ग़ज़ल

गजल

हैरान हो गया बुझा व्यवहार देखकर
अभिभूत हो गया दिली सत्कार देखकर
अंग्रेज आये थे यहाँ व्यापार के लिए
फिर रह गए थे माल का अम्बार देखकर
नाराज़ थी प्रिया मेरी जब देर हो गई
आनंद मग्न हो गई उपहार देखकर
पति प्यार से दुलार से खुश जब किया उसे
नाराज़ अब रही नहीं मनुहार देखकर
दोनों झगड़ते रहते हैं, दिन रात बेवजह
लगता नहीं हबीब है, तकरार देखकर
अब स्वार्थ के जमाने में रिश्ता रहा नहीं
बच्चे भी भागते माँ को बीमार देखकर
नौका विहार में गए बच्चे थे साथ में
बच्चे तमाम खुश हुए पतवार देखकर
गिर्दाब में रिकाब फँसी, सब सवारी त्रस्त
घबरा गया था माझी भी मझधार देखकर
रोती बहू उदास क्यों ‘काली’ जरा बता
दुल्हन हुई प्रसन्न थी घर द्वार देखकर

कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !