कविता

मौकापरस्त सच

तुम कहते हो कि तुम झूठ नही बोलते,
अच्छी बात है,
पर क्या सच बोलते हो हर बार
बोलते होंगे शायद पर क्या
किसी को अपने सच से खुश करते हो,
सच तो हमेशा कड़वा होता है
ये कह कर क्यों सच को बदनाम करते हो
क्यों न हम सच भी ऐसा बोलें जो खुशियां फैलाये,
थोड़े शालीनता का लिबास पहना के और
पाक मक़सद के कुछ आभूषणों से सजा के,
हम सच ऐसे बोले कि हर दिल को भाये,
सच कोई तेज तलवार नही, कि किसी का गला काट देगा
ये तो नरम सा चक्कू है जो, मक्खन के दिल मे उतर जाए
और फिर सच बोलने से डरना क्या,
आपके झूठ के पीछे से भी झाँककर सब को,
अपनी उपस्थिती दर्ज करा ही देता है
पर दोस्तों ये भी इक सच है,
ये सच भी न अब बड़ा मौका परस्त हो गया है,
कहीं मक्खन लिपटा मिलता है तो कहीं,
पत्थर से लिपटा हुआ …सुमन”रूहानी”

सुमन राकेश शाह 'रूहानी'

मेरा जन्मस्थान जिला पाली राजस्थान है। मेरी उम्र 45 वर्ष है। शादी के पश्चात पिछले 25 वर्षों से मैं सूरत गुजरात मे रह रही हुँ । मैंने अजमेर यूनिवर्सिटी से 1993 में m. com किया था ..2012 से यानि पिछले 6 वर्षों कविताओं और रंगों द्वारा अपने मन के विचारों को दूसरों तक पहुचने का प्रयास कर रही हुँ। पता- A29, घनश्याम बंगला, इन्द्रलोक काम्प्लेक्स, पिपलोद, सूरत 395007 मो- 9227935630