कहानी

पुण्य की नगरी पाप का बोलबाला…….

पार्क में टहलते हुये अचानक से मेरा पैर मुड़ गया और मै जोर से चिल्लाया आह! कि तभी किसी ने मुझे थाम लिया, देखा तो हमारे रामू काका अपनी छड़ी घुमाते हुये मुस्करा रहे थे। बेटा उम्र कोई भी हो सावधानी हमेशा ही बरती जाती है रामू काका बोले। आज मै हूँ तो गिरने से बचा लिया जब नहीं रहूँगा तो अपना ख्याल रखना।
मै अचानक स्तब्ध हो गया। काका कैसी बात करते हो ? आपको तो मेरी बिटिया की शादी देखनी है। हाँ भाई बिल्कुल कन्यादान तो मै ही करूँगा। बच्चो की शादी बाद में पहले मेरी शादी मे आपको उपस्थित रहना है, कहते हुये पूर्वी आ गयी। आज पार्क में सिर्फ बाते होंगी क्या ? प्रवीण ने चिल्लाकर कहा। उसके साथ अमित भी आ गया।
इर बार की तरह पूर्वी रामू काका को छेड़ते हुये बोली…. काका अब राम राम किया करो आपकी उम्र ज्यादा हो रही है थोड़ा पुण्य भी इकट्ठा हो जायेगा। रामू काका कहाँ चुप रहने वाले तुरत ही बोले पुर्री ( रामू काका पूर्वी को कभी पुर्री, चुर्री या चश्मिश कहते है) मेरी उम्र तुमसे एक या दो साल ही ज्यादा होगी हाँ राते निकाल दो। हम सब जोर से हँस पड़े।
फिर रामू काका बोले कि बात तो सही है थोड़ा थोड़ा पुण्य इकट्ठा करते रहना चाहिये पता नही किस मोड़ पर जिन्दगी की शाम हो जाय लेकिन आप लोगो को पता है कि पुण्य कैसे इकट्ठा कर सकते है ? हाँ मैने कहा कि तीर्थ यात्रा करनी चाहिये। प्रवीण बोले दूसरो की मदद करनी चाहिये। मा बाप की सेवा करनी चाहिये ऐसा अमित ने कहा। पूर्वी बोली की भूखे को खाना खिलाने से भी पुण्य मिलता है। हाँ तुमको बस खाना ही दिखता है अन्धी ऐसा कहकर रामू काका जोर से हँसे साथ में हम सब भी हँसने लगे।
फिर रामू काका ने कहा तुम सब ठीक कह रहे हो पर क्या जानते हो आज कल तीर्थ स्थानो में भी ठगी शुरू हो गयी है। जहाँ हम पुण्य कमानें जाते है वहाँ सबसे ज्यादा पाप होने लगे है। हम सब बड़े गौर से रामू काका की बाते सुन रहे थे। क्या बात कर रहे है काका ? अमित ने आश्चर्य से पूछा।
रामू काका ने बताया कि वैसे तो हम कई बार तीर्थ स्थानो में दर्शन के लिये गये है पर अब स्थितियाँ बदल गयी है। आप किसी भी जगह दर्शनो के लिये जाते हो तो पैसे देने पर वीआईपी दर्शन मिलते है। चाहे वैष्णो माता का द्वार हो या सिरडी साई। मतलब ये कि क्या पैसे देने पर भगवान अलग से आर्शीवाद देंगे? कुछ जगहों पर आपसे जबरजस्ती चढावा चढवाया जाता है और आप नही चढाते तो आप से बदसलूकी की जाती है। काशी इतना प्राचीन धर्मस्थल है पर वहाँ भी मन्दिर के बाहर पण्डे गाइड बनते है जो पूरा मन्दिर घुमाने की बात करके आपके साथ हो जाते है और बस फिर उनका काम शुरू वो आपसे ज्यादा से ज्यादा पैसे ऐढने मे रहते है। विध्याचल मे तो लगता है कि उन लोगो को आपसे वसूली करनी है अगल अलग तरीको से आपसे पैसे लेने की फिराक में रहते है।
आजकल कुछ बनावटी पुजारी पूजा के नाम पर, धर्म और समाज में कोढ की तरह होते जा रहे है जो न सिर्फ तीर्थ स्थानो की बदनामी करवाते है बल्कि पूरे सनातन धर्म पर कालिख पोतने का कार्य कर रहे है जिनकी वजय से ब्राहम्ण समुदाय को लोग हीन दृष्टि से देखने लगे है। कहने का मतलब सिर्फ ये है कि लोग पुण्य कमाने जाते है और पाप लेकर आते है क्योकि पाप बड़ी सहजता से प्राप्त हो जाता है।
पूर्वी बोली रामू काका बात तो बिल्कुल सही पर ये बताओ इतना ज्ञान लाये कहाँ से ? बेटे ये बाल धूप में तो पकाये नहीं है। और सभी जोर जोर से हँसने लगे।
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सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) dixit19785@gmail.com जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,