लघुकथा

लघुकथा – प्यार और स्वार्थ

कुछ महीनों से छवि और निलय आर्थिक तंगी के बुरे दौर से गुजर रहे थे | हर तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आरहा था | घर खर्च तो सही से चल नहीं पा रहा था ,उस पर दवाई का खर्च और आ गया |
छवि निलय को चाय देते हुए – कैसे होगा ? क्या होगा ?कुछ समझ नही आ रहा |
ये देखो तीन दिन में बिजली का बिल पूरा 10,000 भरना है ; नहीं तो वो भी काट दी जाएगी | निलय बोल पड़ता है |
हे भगवान ! अब क्या होगा ?
“सुनो छवि ! वो तुम्हारा मौसेरा भाई जिसकी पढाई से लेकर नौकरी लगने तक तुम आर्थिक मदद करती रही शायद वो आज तुम्हारी मदद कर भाई होने का
फर्ज निभा दे | तुम उससे बात करो |”

“मैने कभी उससे से कुछ नहीं मांगा ना ही कभी कुछ प्रतिफल की आशा से किया |रिश्ते होते ही अपनो की सहायता और सफलता के लिये हैं | लेकिन आप कहते हैं तो मैं अवश्य फोन करूँगी |”
छवि फोन मिलाती है ट्रीं …ट्रीं … ट्रीं… ट्रीं …
हेलो ! कौन ? “मैं छवि बोल रही हूँ भैया तुम तो भूले से भी याद नहीं करते |भैय्या तुमसे कुछ आर्थिक मदद चाहिये थी | कुछ रुपयों की जरूरत है | निलय का काम शुरू होते ही लौटा दूँगी |”

“देख छवि ! मै मानता हूँ मैं जो नौकरी कर रहा हूँ तुम्हारी बदौलत है पर तब की बात और थी तेरा विवाह नहीं हुआ था कोई खर्चा नहीं था इसलिये तूने मुझे सहारा दिया पर मेरा परिवार और जिम्मेदारियाँ हैं | मैं पैसों से कोई मदद नहीं कर सकता |”
और फ़ोन काट देता है | फ़ोन कान में लगाए छवि ठगी सी खड़ी रह जाती है |

निलय पुन: बात करने को कहता है | छवि फ़िर से फ़ोन मिलाती है | बोलो छवि अब क्या हुआ ? कुछ नहीं तुम्हारे लिये मैने जो दो एफ. डी . तुड़ा दी थी बस वही मूल धन मुझे वापस देदो उतना ही मुझे काफ़ी है |हर महीने जो देती थी तुमको वो पैसा मुझे नही चाहिये |
हेलो …… हेलो ……
कौन ? रोंग नम्बर कह कर……
फोन कट जाता है |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

लखनऊ (उत्तर प्रदेश )

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016