गीतिका/ग़ज़ल

जितने बैठे दूर नज़र से


जितने बैठे दूर नज़र से, दिल के उतने पास हो तुम।
न होकर भी यहीं कहीं हो, ये कैसा एहसास हो तुम।

अधरों पर मुस्कान सजा लो, धार बढ़ा लो कजरे की,
महफिल में तो जाना होगा, माना बहुत उदास हो तुम।

तोहमत तानों बातों पर भी , खमोशी ओढ़े बैठी,
इतनी जल्दी कैसे कह दूँ , ख़ामोशी का राज़ हो तुम।

नज़रबन्द थे मुद्दत से कुछ, मुरझाए बेजान थे कुछ,
उन सब मुर्दा ख्वाबों की, अंतहीन परवाज़ हो तुम।

तन्हाई के आलम में भी, तन्हा होना अब मुश्किल,
भीतर बैठा मुस्काता है, वो अंतिम विश्वास हो तुम।

कहीं पुराना खत मिल जाए, दबा किताबों में जैसे,
बीती उम्र न खत्म हुआ हो, ऐसा ही मधुमास हो तुम,

परचम भले ही दुनिया भर में, लहराकर के आई ‘लहर’,
एक कदम पे सौ सौ बंदिश, कहते हो आज़ाद हो तुम।।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा