कहानी

मेरी बेटी रुचि

आज मीता बहुत खुश थी। खुशियां पिघल कर दो नैनों की धार बन गई थी। नाचने का मन कर रहा था। गाने का मन कर रहा था।
पर उसने अपने आप को धैर्य के बांध में बांध रखा था। घर में उत्सव का माहौल था। आस पड़ोस में मिठाइयां बांट रही थी।
और क्यों ना बांटे…….। उसकी बेटी रुचि, आज खुशियां जो लेकर आई थी।बेटी रुचि का चयन आई. ए. एस. में हो गया था। पूरे देश में उसकी पांचवीं रैंक थी। रुचि के दोस्तों एवं सहेलियों का आना जाना लगा हुआ था। बधाइयों का जैसे फुलझड़ियां छूट रही थी।
पर…….. इन सबके बीच भी मीता का मन कहीं अतीत की गलियों में भटक रहा था।
बचपन की सहेली नीतू को याद कर पुनः आंखों में आंसू तैरने लगे। बड़ी मुश्किल से उसने आंसुओं को रोक रखे थे।और……
सबको मिठाई खिलाने, बधाइयां स्वीकार करने तथा धन्यवाद देने में जुट गई थी।
किंतु रुचि के आंखों से वह बच नहीं पाई। सब के चले जाने के पश्चात उसने मां से पूछा…..
” मम्मा आपकी आंखों में आंसू क्यों, आज तो खुशी का दिन है….।”
“कुछ नहीं बेटा यह तो खुशी के आंसू है…. जो बह रहे हैं” ,… मीता ने कहा।
” नहीं मम्मा कुछ तो बात है जो आप मुझसे छुपा रही हैं। आप को बताना पड़ेगा”…. रुचि बोल पड़ी।
मीता कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी और बताना भी नहीं चाहती थी। पास में बैठी अपनी सहेली दिशा को अश्रु भरी आंखों से देख रही थी।वह असमंजस की स्थिति में थी। दिशा से मीता की यह हालत देखी नहीं गई। उधर रुचि भी काफी उदास थी। दोनों मां बेटी चुप थीं।फिर..…. थोड़ी देर रुक कर दिशा ने कहा बेटा… जो सच है वह जानकर तुम्हें दुख होगा।
“पर मैं सच जानना चाहती हूं आंटी, मम्मा नहीं बता रही है तो आप ही बता दीजिए।
मैं अब बच्ची नहीं हूं जो सुन नहीं पाऊंगी”….. रुचि ने कहा।
थोड़ी देर रुकी दिशा फिर लगभग हकलाते हुए कहा….”तुम मीता की सगी बेटी नहीं हो, उसनेे तुम्हें जन्म नहीं दिया। गोद लिया है।”
रुचि के पांव तले जमीन खिसकने लगी, आंखों में आंसू तैरने लगे।”नहीं मम्मा यह सच नहीं हो सकता……!”
“यही सच है बेटा..….. रोते-रोते मीता ने कहा।
“पर तुमने तो कहा था जब मैं छोटी थी तब पापा का देहांत हो गया था। वह सब क्या झूठ था? नाना नानी ने भी मुझसे कभी कुछ भी नहीं कहा। तो सच क्या है मम्मा, आज आपको बताना ही पड़ेगा”… रुचि ने जोर दिया।
दिशा ने कहा मां नहीं बता पाएगी बेटा, मैं ही बता देती हूं”… दिशा ने कहा।
“मीता की बचपन की सहेली थी नीतू। दोनों दसवीं कक्षा में पढ़ते थे। एक दिन अचानक पता चला कि नीतू ने अपने पड़ोस के एक लड़के के साथ प्रेम विवाह कर लिया, अपने माता पिता के विरुद्ध जाकर। उसके सास ससुर भी खुश नहीं थे।
उसका पति खेती-बाड़ी संभालता था। ससुराल की हालात अच्छी नहीं थी। उसका पति केवल आठवीं पास था। दसवीं के बाद मीता नर्सिंग करने शहर चली आई फिर यही नौकरी मिल गई। गांव में उसका आना-जाना लगा रहता था क्योंकि मां- बापू गांव में थे। एक बार गांव में जाना हुआ तो तब पता चला नीतू के सास ससुर नीतू को बहुत सताते थे। भरपेट खाना भी नसीब नहीं होता था।मीता उससे मिलना चाहती थी पर साहस ना जुटा पाई। गांव की दूसरी सहेली से पता चला की नीतू गर्भवती है। वह ससुराल में ही थी। सास ससुर उसे मायके जाने से रोक रखा था। दो दिन से प्रसव पीड़ा में तड़प रही थी। ना उसे अस्पताल ले गए और ना ही किसी डॉक्टर को बुलाया। गांव में एक मौसी थी जो आया का काम करती थी, वही कोशिश में लगी थी प्रसव कराने की।आनन-फानन में मीता उसके घर गई तो बाहर से ही एक बच्चे की रोने की आवाज आई। उसे लगा सब ठीक है। पर….. हाय रे भाग्य, बच्चे को जन्म देते ही नीतू चल बसी। एक लड़की को जन्म दिया था उसने। ना उसके माता पिता तैयार थे बच्चे की जिम्मेदारी लेने के लिए और न ही सास ससुर रखना चाहते थे उसे।
पति तो उसका निकम्मा था ही। बच्ची लगातार रोए जा रही थी। और सब अपने अपने जिद पर अड़े थे। मीता को बच्ची पर दया आई क्योंकि नीतू से इसकी बहुत पुरानी दोस्ती थी। मीता ने उनसे उस बच्ची को मांग लिया और वे सहर्ष तैयार भी हो गए। क्योंकि बेटी पालने में उनका क्या लाभ होगा? सब यही सोच रहे थे। अपने मां बापू को मीता ने मनाया और उस बच्ची को लेकर शहर चली आई फिर कभी लौट के गांव नहीं गई।
वह बच्ची तुम ही हो, तुम्हे अपनी बेटी मानकर पाला इसने। कभी अपने बारे में नहीं सोचा। मां, बापू ने बहुत कहा,….”शादी कर लो, इस तरह जिंदगी कैसे कटेगी।” पर वह तैयार ना हुई, तुम्हारे बारे में सोच के। या फिर….. नीतू के जीवन में घटित घटना से शायद डर गई थी वह।
लोगों ने बहुत ताने मारे…”बिन ब्याही मां” और ना जाने कैसे- कैसे ताने सुनने पड़े इसे। पर वह अपने निश्चय से कभी डिगी नहीं….. ।
कुछ सहेलियों ने इसका साथ दिया तो हिम्मत बंधी और वो जीवन में आगे बढ़ती गई। तुम्हें पढ़ाया, लिखाया।
मां बापू के गुजर जाने के बाद तुम्हारे सिवाय इसका कोई नहीं था। इसने पूरा समय तुम पर लगा दिया। तुमने भी एक आज्ञाकारी बेटी की तरह इसकी हर बात मानी है। तभी तुम आज यहां खड़ी हो गर्व के साथ।”
मीता की आंखों से झर झर आंसू झरने लगे…..।
“मां”……. कहकर रुचि मीता के गले से लिपट गई। और छाती से लगकर सुबकने लगी।
दोनों का मन हल्का हो गया था…..।
मीता के कंधे से वर्षों पुराना बोझ उतर गया था…….।

               पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com