सामाजिक

यह तो सिर्फ नाम बदलने का अभियान है…

भोपाल से फरीदाबाद की यात्रा के दरमियान भारत बने भारत अभियान पर चर्चा के दौरान किसी सहयात्री ने कहा “यह तो सिर्फ नाम बदलने का अभियान है। सिर्फ नाम बदलने से क्या होगा? और नाम से क्या फर्क पड़ता है भारत हो या इंडिया?

मेरे लिए यह दिल से मुस्कुराने का समय था क्योंकि मुझे प्रायः ऐसे प्रश्नों का सामना करना पड़ता है। मेरा जवाब तैयार था। मैंने कहा “यदि नाम बदलने से कुछ नहीं होता तो कृपया अपना नाम बदल कर देखिए?”

श्रीमान हकबका कर मुझे देखने लगे। वे संभलते इससे पहले मैंने उनसे पूछा “आपका नाम क्या है?” जवाब में उन्होंने सुंदर सा दो अक्षर का नाम बताया।

उत्तर मिलते ही मैंने पुनः प्रश्न किया “क्या आपको अपने नाम का अर्थ पता है?” वे बगलें झांकने लगे।

मेरा अगला प्रश्न था “आप कहां तक पढ़े हैं और आपकी शिक्षा का माध्यम क्या था?”

जवाब मिला “एम ए इन हिंदी साहित्य।”

“एम ए इन हिंदी साहित्य और आपको अपने नाम का अर्थ नहीं पता!”

आसपास के सभी सहयात्री ठहाका लगाकर हंस पड़े और अब हमारी चर्चा में उनकी दिलचस्पी बढ़ गई।

मैंने फिर उन सज्जन से कहा “आपका नाम बड़ा सुंदर है लेकिन यदि मैं और अन्य लोग आपको आपके इस सुंदर से नाम से न बुला कर पिछड़ा लाल, गरीब चन्द्र या गंवार मल कह कर बुलाएं तो ठीक रहेगा?”

अब उनकी ट्यूबलाइट जल बुझ, जल बुझ करने लगी।

फिर मैंने उनसे पूछा ” आपको भारत शब्द का अर्थ पता है?”

खेद की बात है हिंदी साहित्य में एम.ए. होते हुए भी न तो उन्हें अपने नाम का अर्थ पता था, न ही अपने देश के नाम का। देश की शिक्षा पद्धति पर इससे बड़ा व्यंग और क्या हो सकता है?
“और इंडिया और इंडियन का अर्थ पता है आपको?”
मुझे या सहयात्रियों में से किसी को उम्मीद नहीं थी कि जिसे अपने नाम का, अपने देश के नाम का अर्थ पता नहीं है उसे इंडिया और इंडियन का अर्थ पता होगा।
मैं यहां उन सज्जन का नाम प्रकट नहीं कर रही हूँ क्योंकि देश में अधिकांश लोगों की यही स्थिति है। अतः अकेले उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहती।
पर जो लोग इस अभियान को सिर्फ नाम बदलने का अभियान समझ रहे हैं, क्षमा प्रार्थना सहित उन सभी से पूछना चाहती हूँ कि क्या भारत सिर्फ एक नाम है?
आप की निगाह में भारत सिर्फ एक नाम हो सकता है पर मेरे लिए भारत नाम भर नहीं है। मेरे लिए भारत हैतेजस्वी, ओजस्वी, प्रकाशमय, आभावान।
इस नाम में समाहित है हमारा स्वर्णिम इतिहास
समावेशी संस्कृति, विश्व के सर्वश्रेष्ठ जीवन मूल्य, स्वस्थ जीवन शैली, स्वस्थ परिवार संरचना, स्वस्थ समावेशी सामाजिक संरचना, स्वस्थ भोजन पद्धति,
स्वस्थ तन, मन, वचन, शालीन वेशभूषा, उत्तम न्याय पद्धति , उत्तम शिक्षा पद्धति, उत्तम चिकित्सा पद्धति, उत्तम कृषि पद्धति, उत्तम पर्यावरण, उत्तम संगीत, नृत्य कलाएं,
उत्तम व्यवसाय,भारतीय जीवन दर्शन ,भारतीय गणित, भारतीय भौतिक शास्त्र, भारतीय रसायन शास्त्र, भारतीय अर्थशास्त्र, भारतीय ज्योतिष शास्त्र, भारतीय नीतिशास्त्र, और ऐसे ही अनेक विषय और इन सबके सुरक्षित कोष भारतीय ग्रंथ, भारतीय साहित्य, भारतीय भाषाएं और भारतीय भाषाओं में समाहित अथाह ज्ञान भारत नाम समावेशी है। वसुधैव कुटुंबकम का प्रतिनिधि है यह नाम भारत अर्थात सारा विश्व हमारा परिवार है। इस परिवार में केवल मनुष्य नहीं प्राणी मात्र समाहित है, प्रत्येक जीव की उपयोगिता है।
भारत के अलावा विश्व के सभी देशों जैसे अमेरिका, जापान, जर्मनी, इटली, फ्रांस, स्वीटज़रलैंड, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान सभी का देशी और विदेशी किसी भी भाषा में एक ही नाम है।
भारत का नाम भारतीय भाषा में अलग और विदेशी भाषा मैं अलग क्यों?
और एक बात!
कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सबसे अधिक चिंता किस बात की करता है? निस्संदेह अपने नाम की। हर व्यक्ति को चिंता होती है कि नाम खराब नहीं होना चाहिए, नाम नहीं डूबना चाहिए। तो क्या देश का नाम डूब जाना चाहिए?
अपने देश के लिए अन्य प्रचलित नाम आक्रांताओं के द्वारा स्थापित नाम हैं। पर आप ही सोचिए कि क्या कोई भी मनुष्य बुरे सपने को याद रखना चाहता है? क्या दुर्घटना की तस्वीरों से घर की दीवारें सजाई जाती हैं? कदापि नहीं। तो क्यों हम अपने देश की पहचान ऐसे नामों से बनाए हुए हैं जो हमें देश की गुलामी की याद दिलाते हैं। आक्रांताओं ने यह नाम हम पर जब थोपा पर तब उनकी सत्ता थी पर अब तो हम स्वतंत्र हैं, एक संप्रभु राष्ट्र हैं तो क्यों ना हम अपने स्वर्णिम इतिहास के प्रतीक “भारत” नाम से ही देश-विदेश में अपनी पहचान बनाएं। भारत नाम में हमारा समृद्ध इतिहास समाहित है जब हम विश्व गुरु और सोने की चिड़िया जैसे विशेषणों से पहचाने जाते थे। अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा की बदौलत सब कुछ तो पाश्चात्य सांचे में ढल चुका है तो क्या पाश्चात्य प्रभाव में हम अपना स्वर्णिम नाम भी खो दें?
आज अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा की बदौलत भारतीय भाषाओं का अस्तित्व संकट में है। विगत ५ वर्षों में भारतीय भाषाओं के संरक्षण की दिशा में काम करते हुए यह प्रतीत हुआ कि भारतीय भाषाओं और उनमें समाहित अथाह ज्ञान की चिंता करने से पहले देश के नाम की चिंता करना आवश्यक है अन्यथा अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा पद्धति के चलते अगले दस बीस सालों में यह नाम विश्व पटल से विलुप्त हो जाने वाला है। क्या इस विलोपन को हम चुपचाप पुरुषार्थहीन कायरों की तरह देखते रहें?
यह अभियान सिर्फ नाम को बचाने का अभियान नहीं है अपितु नाम तो पहला कदम है। भारतीय भाषाओं के विषय पर भारतीयों के बीच कुछ मतभेद हो भी सकते हैं लेकिन भारत नाम निर्विवाद है और हमारी एकजुटता का आधार है। इसलिए नाम को बचाने का पुरुषार्थ तो लक्ष्य की ओर पहला कदम है और सरल सा कदम है क्योंकि भारत नाम को अपनाने के लिए ना तो संविधान संशोधन की जरूरत है, न ही किसी कानून को बदलने की, न कानून बनाने की। बस हमें अपनी आदत बदलनी है, वाणी बदलनी है, सोच बदलनी है। एक बार यह सरल सा बदलाव हो जाए तो सभी को हमारे पुरुषार्थ पर विश्वास आ जाएगा। आगे की राह कुछ आसान हो जाएगी। क्या अब भी आपको लगता है कि यह सिर्फ नाम बदलने का अभियान है? क्या अभी भी आपको लगता है कि नाम बदलने से क्या होगा? क्या अभी भी आप कह सकते हैं कि नाम यह हो या वह हो क्या फर्क पड़ता है?
— ब्र. विजयलक्ष्मी जैन, विजय नगर इंदौर, संपर्क क्रमांक ७९७४७४००२१

(साभार – वैश्विक हिन्दी सम्मेलन)