गीत/नवगीत

सृजक है जननी है नारी है तू

अपने जीवन को दिशा खुद दे कि अधिकारी है तू।
गर्व से कहना सृजक है जननी है नारी है तू।।

अपने तन की मिट्टी से जीवन रचा करती है तू,
नन्ही आँखों में बड़े सपने रखा करती है तू,
हर कदम बन के दुआ संग संग चला करती है तू,
बदलाव की संभावना की पहली तैयारी है तू।
गर्व से कहना सृजक है जननी है नारी है तू।।

गार्गी मैत्रयी अपर्णा सी विदुषी है तू ही,
रज़िया लक्ष्मीबाई बनके युद्ध तू करती रही,
अंतरिक्ष में उड़ाती यान कल्पना तू ही,
बिन पैर पर्वत चढ़ अरुणिमा बोल कब हारी है तू।
गर्व से कहना सृजक है जननी है नारी है तू।।

सभ्य से समाज में खमोश डरी सहमी है क्यों?
अपनों के ही बीच अनमनी है अनकही है क्यों?
उड़ान पंखों की तेरे भेदेगी आसमान को,
दूसरों की सोच सोच खुद को रोकती है क्यों?
ये सोच पीछे छोड़ दे अबला है बेचारी है तू।
गर्व से कहना सृजक है जननी है नारी है तू।।

राह जो भाये नहीं उस राह जाना ही नहीं,
चाह जो तेरी नहीं होगा वो हरगिज़ ही नहीं,
हौंसला रख साथ चाहे वक्त से भी हो ठनी,
खुद को तू पहचान राख नहीं है चिंगारी है तू।
गर्व से कहना सृजक है जननी है नारी है तू।।

 

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा