धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

कुकी जनजाति की जीवन शैली और धार्मिक विश्वास

कुकी एक अस्पष्ट संज्ञा है जो मैदानी क्षेत्र के लोगों द्वारा उन पर्वतवासी जनजातीय समूह को दी गई है जो खासी, गारो, मिकिर इत्यादि समुदायों से भिन्न हैं I कुकी एक सामुहिक संज्ञा है जिसमे अनेक उपजातियां सम्मिलित हैं I कुकी शब्द की उत्पत्ति और इस समुदाय के मूल निवास के संबंध में विद्वानों में मतभिन्नता है I चीनी भाषा में कुकी का शाब्दिक अर्थ है कु नामक झील के निकट रहनेवाले लोग I माना जाता है कि कुकी लोगों का मूल निवास क्षेत्र चीन था I भारत सरकार (गृह मंत्रालय ) के 1956 में जारी आदेश के अनुसार कुकी समूह में 37 जनजातीय समुदाय को शामिल किया गया है जिनके नाम हैं- 1.बाइते 2. चांगसेन 3. चोंगलोई 4. डोंगल 5. गमलोऊ 6. गंगतो 7. गुइते 8. हनेंग 9. हावकिप 10. हावलाई 11. हेंगना 12. होंगसुंग 13. हराउगकवल 14. जोंगबे 15. खवेहंग 16. ख्वातलंग अथवा खोतलंग 17. खेल्मा 18. खोलाऊ 19. किपजेन 20. कुकी 21. लेंगथांग 22. लहँगन 23. लोउजेम 24. लोउवन 25. लुफेंग 26. मंगजोल 27. मिसाव 28. रियांग 29. सईरहन 30. सेमनम 31. सिंगसोन 32. सितलाऊ 33. सुक्ते 34. थाडो 35. थांगऊ 36. उइबू 37. वाईफेई I
कुकी समुदाय के अनेक गोत्र हैं I गोत्र के बाहर विवाह को प्राथमिकता दी जाती है परन्तु समगोत्रीय विवाह प्रतिबंधित नहीं है I ऊपर वर्णित 37 जनजातियों के बीच परस्पर विवाह होते हैं I अधिकांश विवाह बातचीत द्वारा तय किए जाते हैं I कुकी समुदाय में वधू मूल्य की परंपरा विद्यमान है I निर्धन परिवार के लडके यदि वधू मूल्य का भुगतान करने में असमर्थ होते हैं तो उन्हें अपने भावी श्वसुर के घर में रहकर दो या तीन वर्षों तक शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है I इस दौरान भावी पत्नी के साथ सहवास करना प्रतिबंधित नहीं है I विवाह के दिन लड़की के माता – पिता द्वारा ग्रामवासियों एवं वर पक्ष को भोज दिया जाता है I अविवाहित लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता है I कुकी समुदाय में विवाह पूर्व संबंध स्थापित करना सामान्य घटना है परन्तु विवाह के उपरांत पत्नी के लिए केवल पति के प्रति समर्पित रहना आवश्यक है I विधवा विवाह सामाजिक रूप से मान्य है I बड़े भाई की विधवा से छोटा भाई विवाह कर सकता है पर किसी भी स्थिति में छोटे भाई की विधवा से बड़ा भाई विवाह नहीं कर सकता I कुकी समुदाय में सामान्यतः बहुविवाह प्रथा है परन्तु कुछ कुकी जनजातियों में एकविवाह की परंपरा भी है I यह पितृसत्तात्मक समाज है I पिता ही परिवार का मुखिया होता है, उसी का निर्णय अंतिम होता है I पुत्र पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है I पिता द्वारा लिए गए ऋण का भुगतान करने एवं पिता का अंतिम संस्कार करने का दायित्व भी उसी के कन्धों पर होता है I पैतृक संपत्ति पर पुत्री का कोई अधिकार नहीं होता है I किसी व्यक्ति को पुत्र नहीं होने की स्थिति में उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर उस वंश के किसी पुरुष सदस्य का उत्तराधिकार होता है, पर सभी कुकी जातियों में उत्तराधिकार के नियमों में एकरूपता नहीं है I कुछ कुकी समुदायों में सबसे बड़ा लड़का अपनी पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है, अन्य लड़कों को कुछ नहीं मिलता है, कुछ कुकी समुदायों में सभी पुत्रों के बीच पैतृक संपत्ति का समान रूप से बंटवारा किया जाता है I पूर्वोत्तर के अन्य समुदायों की तरह इस जनजाति का भी मुख्य पेशा कृषि है I ये लोग झूम खेती करते हैं I समतल भूमि में स्थायी खेती भी होती है I चावल इनकी मुख्य फसल है I अन्य फसलें हैं – सरसों, सब्जियां, मक्का, कपास, अरंडी इत्यादि I ये लोग पर्वत की ढलान पर संतरा, अन्ननास, लहसुन आदि का उत्पादन करते हैं I महिला – पुरुष सभी खेतों में कम करते हैं I महिलाएं हल नहीं चलाती हैं I बकरी, बत्तख, कबूतर, मुर्गी, सूअर आदि पालते हैं I महिलाएं कताई – बुनाई में दक्ष होती हैं I प्रत्येक घर में हथकरघा मौजूद होता है I बुनाई कुकी समुदाय का कुटीर उद्योग है I बांस और बेंत की गृहोपयोगी वस्तुएं बनाने, लकड़ी और लोहे के सामान बनाने में भी ये लोग पारंगत होते हैं I
सभी कुकी समुदायों में ग्रामीण प्रशासन चीफ के हाथों में होता है I चीफ का पद आनुवंशिक होता है I चीफ के पास असीमित अधिकार होते हैं I वह झूम खेती के लिए खेतों का चुनाव करता है, के विवादों का निपटारा करता है तथा सामाजिक – धार्मिक आयोजनों में निर्णायक की भूमिका का निर्वाह करता है I सभी किसान अपने उत्पादित चावल का कुछ भाग चीफ को देते हैं I ग्रामीणों द्वारा शिकार में मारे गए जानवरों में चीफ का हिस्सा सुरक्षित होता है I चीफ गाँव के अनाथ लोगों की देखभाल करता है, निर्धन लोगों की सहायता करता है तथा असहाय लोगों को शरण देता है I चीफ के निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती है I धार्मिक दृष्टि से कुकी समुदाय प्रकृतिपूजक अथवा ब्रह्मवादी है I येलोग एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास करते हैं जिसे पथिएन कहा जाता है I ये लोग पुनर्जन्म, आत्मा, स्वर्ग, नरक की अवधारणा में आस्था रखते हैं I ये लोग प्राकृतिक शक्तियों की पूजा – अर्चना करते हैं I इनके अतिरिक्त पहाड़ों और वनों में रहनेवाले अनेक देवी – देवताओं तथा भूत – प्रेतों के प्रति भी कुकी समाज गहरी आस्था रखता है I पशु – पक्षियों की बलि देकर इन देवी – देवताओं की पूजा की जाती है I इनकी मान्यता है कि कुछ अदृश्य शक्तियां मानव के शरीर और मन पर अमिट प्रभाव डालती हैं I अधिकांश कुकी जनजातियों ने इसाई धर्म ग्रहण कर लिया है परन्तु इसके बाद भी वे अपने पारंपरिक विश्वासों, विधि – निषेधों और रीति –रिवाजों का पालन करती हैं I पूजा – अर्चना के अवसर पर पर्याप्त मात्रा में मदिरापान किया जाता है I सभी महिलाएं धार्मिक उत्सवों में सम्मिलित होती हैं तथा पुरुषों की अपेक्षा अधिक मात्रा में मदिरापान करती हैं I पूजा कराने के लिए वंशानुगत पुजारी की परंपरा नहीं है, गाँव के लोग ही अपने बीच से किसी व्यक्ति को पुजारी के पद के किए चुन लेते हैं I इनका विश्वास है कि मृत्यु के उपरांत मानव इति – कुआ में जाता है I यह स्वर्ग जैसा ही है I यहाँ मनुष्य शांतिपूर्ण अपना जीवन व्यतीत करता है I सज्जन लोग इति – कुआ में जाते हैं जबकि दुर्जनों के लिए इसमें प्रवेश करना असंभव है I जिन लोगों की जानवरों के मरने से मृत्यु होती है उनके लिए इति – कुआ में प्रवेश प्रतिबंधित है I वे लोग सरा – कुआ में जाते हैं I सरा – कुआ अशांति और संघर्ष से भरा हुआ है I मृत्यु के बाद सभी कुकी जनजातियों में शव को दफ़नाने की परंपरा है I केवल रोंगखोल समुदाय में शव को जलाया जाता है I रोंगखोल समुदाय ने पूर्ण रूप से हिंदू धर्म अंगीकार कर लिया है, अतः इस समुदाय में हिंदू धर्म और रीति –रिवाजों के अनुसार अंत्येष्टि क्रिया और श्राद्ध किया जाता है I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com