लघुकथा

तृष्णा

आज शाम को सैर करते हुए पार्क में गई तो पार्वती के अलावा बाकी सब आए हुए थे. मुझे अंदाजा हो गया था, कि पार्वती किस काम में व्यस्त है.
पार्वती साथ वाली कॉलोनी के श्रमिकों के लिए अन्नपूर्णा-जलपूर्णा है. आजकल उनकी कॉलोनी में निर्माण-कार्य चल रहा है. लगभग 70 श्रमिक निर्माण-कार्य में लगे हुए हैं. इसके अलावा 10 गार्ड तो हमेशा रहते ही हैं. पार्वती के घर किसी का भी जन्मदिन या शादी की सालगिरह हो, सभी श्रमिकों को भंडारा मिलता ही है. सुबह उठते ही पानी के कई बर्तन भरकर वह फ्रिज में रखती है, तकि श्रमिक जब भी पानी पीने आएं, उन्हें ठंडा जल मिल सके. इसलिए उसे सब माताजी कहते हैं.
उस दिन बात करने में कुशल 3-4 मजदूर गार्ड के पास गए और कहा- ”उन्हें माताजी से मिलना है, पता करो वे घर में हैं क्या?”
गार्ड के काम पूछने पर वे बोले- ”जैसे साथ वाली कॉलोनी में ठंडे जल का प्याऊ बाहर लगा हुआ है, हमें यहां भी अंदर लगवाना है.”
गार्ड ने पता कर उन्हें माताजी के पास भेज दिया.
”हां भाई, कैसे आए हो?” खनकती आवाज में पार्वती ने पूछा.
”माताजी, आप तो जानती ही हैं, कि इस बार दिल्ली में कितनी गर्मी पड़ रही है, अगर कॉलोनी के अंदर ठंडे जल का प्याऊ लग जाए, तो बड़ी कृपा होगी.”
”आपका विचार तो नेक है, पर यह काम तो कॉलोनी के अध्यक्ष ही कर सकते हैं.” पार्वती अपनी जगह सही थी.
”माताजी, हमारे लिए तो अध्यक्ष भी आप हैं और भगवान भी, हमें तो यह पता है कि यह काम आप ही कर सकती हैं.”
”ठीक है भाई, हम कोशिश कर देखेंगे.” पार्वती का आश्वासन आज के नेताओं जैसा उथला नहीं था- ”इन श्रमिकों की तृष्णा न तृप्त हुई तो हमारा धन भी मृगतृष्णा के बराबर हो जाएगा.” उसने मन में सोचा था.
”माताजी, दो दिन बाद श्रमिक दिवस आ रहा है, उस दिन ठंडे जल के प्याऊ का उद्घाटन हो जाए, तो अच्छा रहेगा.” कहकर मजदूर तो आश्वस्त होकर चले गए, पर पार्वती को एक बड़ी जिम्मेदारी दे गए. पार्वती उसी समय से फोन घुमाने में लग गई.
”आपको पता है प्याऊ के लिए प्लांट लगाने में 25-30 हजार लग जाएंगे, वो कौन देगा?” अध्यक्ष का दो टूक जवाब था. (पैसे तो मैं दे दूंगी, बस आप मंजूरी देने के लिए दिल बड़ा करो) पार्वती का स्वगत कथन था.
”इन श्रमिकों को इतना लंबा काम करने में अभी साल भर लग जाएगा, हर महीने पानी का कितना अतिरिक्त बिल आएगा, आपको अंदाजा नहीं होगा.” उपाध्यक्ष का अड़ंगा था. (कमरा तो सबका ही बढ़ रहा है, कौन मना करेगा? उन्हें तो मैं ही मना लूंगी) पार्वती का निश्चय अडिग था.
30 अप्रैल की शाम तक श्रमिकों की तृष्णा-तृप्ति के प्रबंध को पूरा करने में वह निरंतर लगी हुई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “तृष्णा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    पार्वती का बहुत बड़ा दान है यह . श्रमिक दिवस मनाना भी बहुत नेक काम है लीला बहन . बड़ी बातें करते हुए अक्सर हम छोटी छोटी बातों को भूल जाते हैं . पार्वती ने सचे दिल से महसूस किया कि वोह श्रमिक किसी शौक के कारण नहीं आये थे, उन को ठन्डे पानी की जरूरत थी . गरीब मजदूर या रेहड़ी वाले को हम अक्सर इग्नोर कर देते हैं और कुछ रुपयों की खातर उस से मोल भाव करते हैं लेकिन किसी रेस्टोरेंट में खाते समय ढेर सा टिप दे देते हैं सिर्फ अपना बड़ापण दिखाने के लिए .लघु कथा जागरूपता लानी वाली है

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. पार्वती का बहुत बड़ा दान है यह, उसने गरीब श्रमिकों की जरूरत को शिद्दत से महसूस किया और उनकी जरूरत पूरी की. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    मजदूर दिवस 1 मई को सुबह-सुबह पार्वती की कॉलोनी में सबसे छोटे मजदूर द्वारा रत्नाकर कॉलोनी के अंदर ठंडे जल के प्याऊ का उद्घाटन हो गया. अब सभी श्रमिक वहां से ठंडे जल का रसपान कर रहे हैं और अन्नपूर्णा-जलपूर्णा पार्वती का गुणगान कर रहे हैं, हालांकि पार्वती को नाम या गुणगान की कोई इच्छा नहीं है. सर्वे भवंतु सुखिनः… ही उसके मन की महक है.

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