चुनावी दुल्हन
धड़क रहा है दिल दुल्हन का, मचल रहे इसके अरमान,
अभी बराती द्वार खड़े हैं, चाह रहे सब ही सम्मान।
एक कुर्सी है बीस खड़े हैं, किसका भाग्य प्रबल प्रभु जाने,
लगा दिये हैं धन बल अपना, बना रहे जिससे अभिमान।।1।।
दुल्हों की भरमार लगी है, एक अभी तक प्रतिभागी है,
चाहत सभी छुपाये दिल में, सहयोगी तेवर बागी है।
गठबंधन के पहले का गठबंधन, कोई तोड़ सके ना,
धर्म क्षेत्र में पाप जिताने वालों के मन भय जागी है।।2।।
गठबंधन की मुहँ दिखाई का, कंगन केवल सीटे हैं,
बहुत भरा है ह्रदय हलाहल, गाते मगर प्रेम गीते हैं।
जिनकी छाती पर चढ़कर मूंग, दलन की चाहत थी,
आज उन्हीं के बगल लगाकर बैठे अपनी सीटे हैं।।3।।
लगा तमाशा नाच रहे हैं, कई बाराती बन्दर से,
ऊपर से ये पाँव पकड़ते जलन भरी है अन्दर से।
सोंच रहे हैं मारूँ ठुमका, दूर गिरे प्रतिभागी अपना,
सर पर सेहरा नहीं बंधा तो घूमें कई छछुंदर से।।4।।
तना हुवा है जनवासा जिसके अन्दर सब बैठे हैं,
कुछ परिणय के गीत सुनाते, कुछ गुस्से में ऐंठे हैं।
राम ही जाने किसे मिलेगा यह लड्डू अलबेला,
सुख सुविधा संग शक्ति दायिनी कुर्सी चाहत बैठे हैं।।5।।
— प्रदीप कुमार तिवारी