गीत/नवगीत

चुनावी दुल्हन

धड़क रहा है दिल दुल्हन का, मचल रहे इसके अरमान,
अभी बराती द्वार खड़े हैं, चाह रहे सब ही सम्मान।
एक कुर्सी है बीस खड़े हैं, किसका भाग्य प्रबल प्रभु जाने,
लगा दिये हैं धन बल अपना, बना रहे जिससे अभिमान।।1।।

दुल्हों की भरमार लगी है, एक अभी तक प्रतिभागी है,
चाहत सभी छुपाये दिल में, सहयोगी तेवर बागी है।
गठबंधन के पहले का गठबंधन, कोई तोड़ सके ना,
धर्म क्षेत्र में पाप जिताने वालों के मन भय जागी है।।2।।

गठबंधन की मुहँ दिखाई का, कंगन केवल सीटे हैं,
बहुत भरा है ह्रदय हलाहल, गाते मगर प्रेम गीते हैं।
जिनकी छाती पर चढ़कर मूंग, दलन की चाहत थी,
आज उन्हीं के बगल लगाकर बैठे अपनी सीटे हैं।।3।।

लगा तमाशा नाच रहे हैं, कई बाराती बन्दर से,
ऊपर से ये पाँव पकड़ते जलन भरी है अन्दर से।
सोंच रहे हैं मारूँ ठुमका, दूर गिरे प्रतिभागी अपना,
सर पर सेहरा नहीं बंधा तो घूमें कई छछुंदर से।।4।।

तना हुवा है जनवासा जिसके अन्दर सब बैठे हैं,
कुछ परिणय के गीत सुनाते, कुछ गुस्से में ऐंठे हैं।
राम ही जाने किसे मिलेगा यह लड्डू अलबेला,
सुख सुविधा संग शक्ति दायिनी कुर्सी चाहत बैठे हैं।।5।।

— प्रदीप कुमार तिवारी

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं