गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

चलो हम मोम की मानिंद पिघल के देखते हैं
इश्क की आग में इक बार जल के देखते हैं

घर में बैठकर दुनिया की खबर कैसे लगे
आओ घर से ज़रा बाहर निकल के देखते हैं

कानों सुनी बात पे जायज़ नहीं यकीं करना
खुद मौका-ए-वारदात पे चल के देखते हैं

मेरा मनाना उनका रूठना हो गया बहुत
अब कहानी के किरदार बदल के देखते हैं

चेहरा उनको क्या अपना नज़र नहीं आता
जब अशआर वो मेरी गज़ल के देखते हैं

भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- rajivmalhotra73@gmail.com