संस्मरण

संस्मरण – मेरा एम. ए. में प्रवेश

वर्ष 1973 में बी .एस सी. उत्तीर्ण करने के बाद मेरी इच्छा थी कि अपने प्रिय विषय वनस्पति -विज्ञान में एम.एस सी. करने के बजाय हिन्दी विषय के साथ एम.ए. करूँ। प्रवेश हेतु सिफारिश के लिए मैंने अपने पूज्य चाचा जी डॉ. सी.एल. राजपूत; जो उस समय आगरा कालेज आगरा में मनोविज्ञान विषय के प्रोफ़ेसर थे, से कहा कि मैं हिंदी में एम.ए. करना चाहता हूँ। उन्होंने कहा कि ठीक है, कल चलते हैं।
अगले दिन मैं चाचाजी के साथ आगरा कालेज के हिंदी विभाग में पहुँचा।हिंदी के किसी भी प्रोफ़ेसर से मेरा कोई परिचय नहीं था, क्योंकि  मैं विज्ञान स्नातक था। उस समय आगरा कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ.भगवत स्वरूप मिश्र जी थे। उनसे जब चाचाजी ने इस सम्बन्ध में बताया कि यह मेरा भतीजा है औऱ इसी वर्ष इसी कॉलेज से बी.एस सी. किया है। इसका आपके यहाँ प्रवेश होना है। इस पर उन्होंने स्पष्ट शब्दों में इनकार करते हुए कहा कि बेटे अभी तक तो इस कॉलेज में विज्ञान के किसी भी छात्र का प्रवेश नहीं हुआ है ।ऐसा कोई नियम भी नहीं है कि विज्ञान से स्नातक
का हिंदी में प्रवेश किया जाए। मैं चाचाजी के साथ निराश भाव मन में लिए हुए अपने 15 किलोमीटर दूर गाँव वापस आ गया।
अगले दिन चाचाजी डॉ. भगवत स्वरूप मिश्र जी के शिष्य और उन्हीं के निर्देशन में पी.एच. डी.कर रहे प्रो. खुशीराम शर्मा जी से  हिंदी विभाग के हॉल में बने हुए चेम्बर में मिले। मैं भी साथ में था। चाचा जी ने वही बात उन्हें बताई तो उन्होंने भी वही बात दुहराई कि बी. एस. सी. वालों का एम .ए. हिंदी में प्रवेश नहीं होता। यही नियम है और परम्परा भी। फिर भी डॉ. खुशीराम शर्मा जी ने मुझसे एक सवाल किया कि बताओ बेटे कैसे करें तुम्हारा प्रवेश। इस पर मैंने कहा -सर मेरी बहुत इच्छा है कि एम. ए. हिंदी में करूँ। यदि हो सके तो देख लीजिए। इस पर वह बोले -किस आधार पर? तो मैंने उन्हें बताया कि मैं लिखता हूँ। वह बोले -क्या लिखते हो ?और कब से लिख रहे हो ?मैंने कहा – कविता, कहानी , लेख  वगैरह लिखता हूँ और जब चौथी क्लास में  पढ़ता था ,तब से लिख रहा हूँ। वह कहने लगे -ठीक है। कल मुझे विभाग में आकर दिखाओ।
अगले दिन बड़े ही  उत्साह में मैने 160 पेज की दो मोटी-मोटी कापियां ,जो उस समय चौदह आने की आती थी; उनके सामने सुबह 10 बजे ही ले जाकर प्रस्तुत कर दी। उन्होंने उन्हें उल्टा -पलटा कुछ पढ़ा औऱ चेहरे पर प्रसन्नता लाए हुए बोले -जाओ , हो गया तुम्हारा प्रवेश। फार्म ले जाओ और ऑफिस के काउंटर पर फ़ीस जमा कर देना। मैं बहुत खुश। मुझे मेरी  इच्छित मुराद मिल गई थी और मेरे पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे।

डॉ. भगवत स्वरूप  ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040