मन की रीत
बात करते करते हमसे वो
सहमति न होने पर बात से,
अक्सर वो लड़ लेते थे हमसे,
कहते हमेशा बात नही होगी अब,
फिर भी रोज़ सवेरे उनका,
आता सुप्रभात का संदेश,
देख कर सन्देश उनका सुबह
सोच बात रात की आती मुस्कान ,
सब खत्म करने चले एक दिन
लेकिन खुद को रोक न सके,
कैसी मजबूरी थी उनकी ,
या कुछ बात थी हममें ,
जो खत्म करने वाले भी
कुछ नही खत्म कर सके कभी ,
अजीब होता है ये रिश्ता जो,
जुड़ता है मन से मन का ,
कितनी भी कोशिश कर ले वो,
हमसें दूर नही जाएंगे कभी ,
एक कशीश है हममें, बातों में
जो रोकता है उनको जाने से ।।।
— सारिका औदिच्य