कविता

आज की नारी

जगजननी जगदम्बिका,
मैं सृष्टि का अभिमान हूँ।
ना सीता ना द्रोपदी,
ना महाकाली का नाम हूँ।
मैं आज की नारी महान हूँ ।
सम्पूर्ण जगत जन्मा मुझसे,
मैं नारी नहीं पूरा संसार हूँ।
बेटे का मोल बड़ा,
कलयुग का दानव लीलने को खड़ा।
जगती आंखों के सपने हैं बड़े,
अमावस की रातों से हैं लड़ें।
है मंजूर नरसंहार भी,
है असहनीय अपमान,
मैं आज की नारी महान।
घर का ही नही,
सरहद पर भी लड़ने को तैयार हूं।
मैं हिन्द की बेटी दोधारी तलवार हूँ,
अबला नही कमजोर नही,
मैं आज की नारी महान हूँ।
— कल्पना ‘खूबसूरत ख़याल’

कल्पना 'खूबसूरत ख़याल'

मैं पुरवा, उन्नाव (उत्तर प्रदेश ) से हूं। मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं आगे चलके शिक्षक बनने की इच्छा है। लिखना मेरा शौक है।