कविता

वीर वधू का दर्द

मेहंदी का रंग रुठ गया चूड़ी का साथ दो पल में टूट गया,
तुम्हारे लहू से मेरे माथे का सिंदूर छूट गया।
तुम तो आये तीन रंग के तिरंगे में लिपटकर,
मेरे शरीर पर तो ये सफेद रंग ही रह गया।
मैं भगवान को दोष दे रही थी,
जीवन आधा कर दिया जीते जी मार दिया।
सौभाग्यवती होने का गुरुर छीन लिया,
अपनी किस्मत को मैं कोस रही थी।
बस हर पल यही सोच रही थी,
तुम तो आये तीन रंग के तिरंगे में लिपटकर।
मेरे शरीर पर तो ये सफेद रंग ही रह गया।।
बेसुध खड़ी थी मैं आंसू बहाये मैंने,
कुछ समझ ना आया मुझको महसूस हुआ मैं हो गयी असहाय।
मान तुम्हारी शहादत का रक्खा दिलबर,
जय हिंद के नारे भी लगाए मैंने।
दिल पर पत्थर रख कर सारे दर्द छुपाये मैंने,
समाज की नज़र में विधवा होना दुर्भाग्य है।
शहीद की पत्नी हूँ सौभाग्य है मेरा,
खुद को बहुत समझाया मैंने।
फिर भी ये सवाल हर बार आया मन में,
तुम तो आये तीन रंग के तिरंगे में लिपटकर,
मेरे शरीर पर तो ये सफेद रंग ही रह गया।।
— कल्पना ‘खूबसूरत ख़याल’

कल्पना 'खूबसूरत ख़याल'

मैं पुरवा, उन्नाव (उत्तर प्रदेश ) से हूं। मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं आगे चलके शिक्षक बनने की इच्छा है। लिखना मेरा शौक है।