कविता

मुन्तज़िर

मेरी ज़ुल्फ़ें मुंतज़िर
तेरी उंगलियों की
मेरी रूह को तलाश
तेरी ख़ुशबुओं की
तुझसे मिलती रहती हूं
ख़्वाबों में मैं कहीं
ख़ुद ही उड़ती रहती हूं
ख़यालों में मैं कहीं
चलो बादलों के पार
बस जाएँ हम कहीं
मेरे मन को उड़ान
तेरी शोख़ियों की
मेरी रूह को तलाश
तेरी ख़ुशबुओं की
तूने छुआ था मुझे जब
अभी कल ही की बात थी
ठीक से याद तो है कब
वो एक लंबी रात थी
दौर खिलखिलाहट का
और मैं तेरे साथ थी
आज हर सांस राह देखे
तेरी आहटों की
मेरी रूह को तलाश
तेरी ख़ुशबुओं की
— प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’ 

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी