लघुकथा

तरकीब

कक्षा 12 पास करने के बाद वह अपनी पसंद के विषय भूगर्भ शास्त्र, इतिहास व भूगोल से स्नातक करना चाहता था, पर हमेशा की तरह यहां भी मां कहती थी विज्ञान व गणित में ही भविष्य है, नौकरी मिलने के अवसर वहीं अधिक है. घर की आर्थिक स्थिति के कारण यहीं कर सकते हो, तो गुरु राम राय डिग्री कालेज में. इसलिए फार्म भी भर दिया और प्रवेश मिल भी जाना था. फिर उसने सोचा- ”कहाँ तो मैं तकनीकी शिक्षा चाहता हूँ, डिग्री नहीं कर सकता खर्च बहुत होगा, मुझे किसी ने डिप्लोमा का फार्म मुफ्त में दे दिया, उसी को आजमा लेता हूं.
मां को पूरे घर का खर्च चलाना था. बोलीं ”दूसरे शहर में जाने से हॉस्टल का खर्च व वहाँ फीस भी अधिक होगी. इसलिए यही करना है तो शहर में ही कर ले.”
भगवान कोई-न-कोई रास्ता निकाल ही देता है. बड़े भाई ने, जो बी. एड. करके आए थी, उन्होंने कहा- ”मुझे 150 रुपये की अध्यापक की नौकरी मिल गयी है जो मैं तुझे दे दूंगा पर क्या तू सिर्फ इतने में कर पाएगा?”
उमंग में भरकर उसने कहा- ”हां कर लूंगा.”
”शुरुआती अधिक फीस के लिए भाई ने भी अपने मित्रों से पैसे उधार माँगे और 300 रुपये लेकर हम संस्थान गए जो दूसरे शहर में था. आसानी से प्रवेश मिल गया, क्योंकि नंबर अच्छे थे. तब मेरिट पर ही प्रवेश मिलता था, 10 तथा 12 कक्षा में नंबर के आधार पर. वहाँ भी शुल्क में मुझे छूट मिल गयी. सिर्फ जरूरत की पुस्तकें खरीदीं, कुछ पुस्तकालय से लेकर पढ़ता था. हॉस्टल फीस सिर्फ 35 रुपये थी मैस का भोजना महंगा था, इसलिए सस्ते ढाबे से अनुबंध किया. अब होटल से भोजन का बिल की समस्या थी. इसके लिए मैं एक ही वक्त खाना खाता था. वह पूरा नहीं पड़ता था. ट्यूशन पढ़ा नहीं सकता था, क्योंकि हॉस्टल आना-जाना भी कुछ समय ले लेता था.” उसने अपनी व्यथा कथा सुनाते हुए कहा.
”अब मैंने देखा कि कुछ लोग ढाबे में भोजन तो करते हैं, पर पैसे नहीं देते. ढाबे का मालिक उनसे डरता था. मैंने ढाबे के मालिक से बात की कि मुझे भोजन के बिल में आधी छूट दे दो, जो बिना पैसे दिये खाना खाते हैं, उनसे पैसे वसूल करने की जिम्मेदारी मेरी. वह राजी हो गया. फिर मैंने उसके सभी डूबे हुए पैसे दिला दिये. इस प्रकार मैंने अपना डिप्लोमा पूरा किया. यद्यपि इस कारण मेरी पढ़ाई में भी कुछ विघ्न तो पड़ा ही था.”
हौसला बुलंद हो तो कोई तरकीब भी काम कर जाती है. बुलंद हौसले ने उसे तरकीब सुझाई थी और उसने मंजिल को पा लिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “तरकीब

  • लीला तिवानी

    बात हौसले की है. हौसला बुलंद हो तो कोई तरकीब भी काम कर जाती है. बुलंद हौसले ने उसे तरकीब सुझाई थी और उसने मंजिल को पा लिया था. उसने भी हौसले से अपने सपनों की मंजिल को पा लिया था. उस समय हौसला बुलंद न किया होता तो सारी उम्र सपने के टूटने, पूरा न होने की टीस मन में रहती. हौसले ने हौसले को हौसला दिया.

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