मुक्तक/दोहा

विधाता छंद (मुक्तक)

दरश की लालसा मोहन के जब तक साँस बाक़ी है |
पियूँ नित नाम रस प्याला मिलन की प्यास बाक़ी है |
तुम्हारी मोहनी सूरत बसी है आन नैनों में-
मुरलिया आ सुनाओगे यही विश्वास बाक़ी है |

बजाकर प्रेम की मुरली सकल जग प्रेममय कर दो |
पराक्रम ,तेज , खुशहाली समूचे विश्व में भर दो |
सुवासित हो प्रकृति सारी खिले मुस्कान अधरों पर –
करूँ नित प्रार्थना योगेश गिरधारी यही वर दो |


किया श्रृंगार मनभावन तुम्हे मोहन रिझाने को |
निधी वन में मुरारी रास लीला फिर रचाने को|
सुनो योगेश करुणा कर न तरसाओ दरश दो प्रभु-
लगन तुम से लगा मोहन खड़ी तन-मन रंगाने को |

मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016