कविता

अश्रुबूंद

इसरो के चेयरमैन श्री आर के सिवन को प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा गले लगाते हुए ली गई चित्र संभवतः इस वर्ष की सबसे सुखद तस्वीर है जो अतीव दुखद क्षणों में ली गई है ।

आजकल जब राजनीतिक लोगों की छवि प्रबुद्ध वर्ग में एक खल चरित्र की तरह ही है एक प्रबुद्ध वैज्ञानिक का एक नेता के कांधों पर संबल ढूंढना अविस्मरणीय है ।

एक जनप्रिय नेता और एक कुशाग्र वैज्ञानिक के इस भावुक रूप ने नई ऊर्जा, नया उजास समाज में प्रसारित किया है ।

इस चित्र ने लाखों लोगों की आंखों में नमी उतारी है ।
इसी चित्र को देखकर ही भावावेग में कुछ पंक्तियां लिखी है ।

राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत
भावों के धूंध पर क्या लिक्खूं
अनायास जो छलकी आंखों से
उस अश्रुबूंद पर क्या लिक्खूं

वह कर्म योग की मोती सी
तप से निष्ठा से धुली हुई
जाने कितनी ही रातों की
नींदें थी उसमें घूली हुई

जाने कितनी आशाओं के
अपनी परिधि पर रंग लिए
निस्वार्थ समर्पित संकल्पित
संतप्त साधना संग लिए

वह एक बूंद थी सागर के
भूतल अथाह से गहरी सी
साहस की डोरी कसे हुए
पलकों के बंध पे ठहरी सी

सत्य सांत्वना पाकर हुई , जो
क्षणिक कुंद पर क्या लिक्खूं
अनायास जो छलकी आंखों से
उस अश्रुबूंद पर क्या लिक्खूं

ये बूंद व्यथा की बिंब नहीं
ना है प्रतीक ये हार का
ये तो है उद्घोष प्रबल
नियति पर पुनः प्रहार का

वो भग्न हृदय से तेज लिए
दृढ़ प्रतिज्ञ हो बह निकली
असफल करूं असफलता को
करुण कण्ठ से कह निकली

नव ऊर्जा नवरूप , नवल
संकल्प सुनाई पड़ता है
इस अश्रुबूंद में ‘समर’ मुझे
अब चंद्र दिखाई पड़ता है

मैं गंगाजल सी पावन इस
‘ वारि-मुकुंद ‘ पर क्या लिक्खूं
अनायास जो छलकी आंखों से
उस अश्रुबूंद पर क्या लिक्खूं ।।

आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी ।

समर नाथ मिश्र
रायपुर