ग़ज़ल
हम-तुम जब महफिल में अचानक आमने-सामने आए थे
मैं भी डर गया था थोड़ा-सा, तुम भी कुछ घबराए थे
समझने वाले समझ गए कि कुछ तो पर्दादारी है
जब तुम सबसे गले मिले और हमसे नैन चुराए थे
रेत के महल थे सब के सब आँधी के आगे क्या टिकते
एक – एक करके टूट गए जितने भी ख्वाब सजाए थे
कैसे छुपा लूँ दुनिया से मैं अपनी प्रेम कहानी को
आँखें बोल रही हैं कि तुम रात को ख्वाब में आए थे
किस्मत में ही नहीं लिखा था पा लेना तुमको वर्ना
तावीज़, दुआएं, जंतर – मंतर सब रस्ते आजमाए थे
— भरत मल्होत्रा