इतिहास

अमर बलिदानी : शंकर शाह व रघुनाथ शाह (बलिदान दिवस १८ सितंबर पर विशेष)

इतिहास के पन्नों पर दर्ज़ अमर बलिदानों में गोंड राजाओं का बलिदान भी बहुत महत्व रखता है। मध्य प्रदेश के तत्कालीन गोंडवाना (अब जबलपुर) साम्राज्य के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह का बलिदान 18 सितम्बर, 1857 को हुआ था। 1857 के विद्रोह की ज्वाला सम्पूर्ण देश में धधक रही थी। असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। लेकिन दो महान क्रान्तिकारियों का बलिदान गुमनाम ही रह गया।राजा शंकर शाह, निजाम शाह के प्रपौत्र तथा सुमेर शाह के एकमात्र पुत्र थे। उनके पुत्र का नाम रघुनाथ शाह था।राजा शंकर शाह जमींदारों तथा आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने युद्ध का आह्वान किया था। इस स्वतंत्रता संग्राम में रघुनाथ शाह ने अपने पिता का बढ़-चढ़कर सहयोग किया था।
जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेन्ट का कमांडर ले.ज. क्लार्क बड़ा अत्याचारी था। उसने छोटे-छोटे राजाओं और आम जनता को बहुत परेशान कर रखा था। चारों ओर अनाचार और व्यभिचार का बोलबाला था। जनता में हाहाकार मचा हुआ था। राजा शंकर शाह ने जनता और जमींदारों को साथ लेकर क्लार्क के अत्याचारों को खत्म करने के लिए संघर्ष का ऐलान किया। उधर क्लार्क ने अपने गुप्तचरों को साधु वेश में शंकर शाह की तैयारी की खबर लेने गढ़पुरबा महल में भेजा। चूंकि राजा शंकर शाह धर्मप्रेमी थे, इसलिए उन्होंने साधुवेश में आए गुप्तचरों का न केवल स्वागत-सत्कार किया बल्कि उनसे निवेदन किया कि वे स्वतंत्रता संग्राम में योगदान करें। राजा ने युद्ध की योजना भी उन गुप्तचरों के सामने रख दी।
परन्तु वही “साधु” रात को 52वीं रेजीमेन्ट के ले.ज. क्लार्क के सामने पहुंच गए और राजा की योजना बता दी कि दो दिन के बाद राजा शंकर शाह 52वीं रेजीमेन्ट की छावनी पर आक्रमण करेंगे।
अंग्रेजों ने तुरन्त गढ़पुरबा महल को चारों तरफ से घेर लिया। वह 14 सितम्बर, 1857 का दिन था। राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह को बन्दी बना लिया गया। महल की तलाशी के दौरान अंग्रेजों को एक छोटा-सी परची मिली, जिस पर राजा शंकर शाह ने अपनी कुलदेवी मालादेवी को सम्बोधित करते हुए एक प्रार्थना लिखी थी। वह इस प्रकार थी-
“खाई लेव दुष्टन को शत्रु संघारिका।
मार अंग्रेज रेज का देई मात चन्डी।।
बचे नहीं बैरी बाल-बच्चे संघारिका।
शंकर की रक्षा कर दास प्रतिपाल का।।
दीन की सुन आये मीत कालका।
खायेलई मलेछन को झेल नहीं करो अब।।
मच्छन कर तत्छन धौर मात कालका।”

इस कविता का सार था- अंग्रेजों को समूल नष्ट कर दो।क्लार्क ने पिता-पुत्र दोनों को जेल में बन्द कर दिया। कंपनी सरकार ने राजा शंकर शाह तथा उनके पुत्र रघुनाथ शाह को षडंत्र रचने तथा युद्ध करने के आरोप में सजा-ए-मौत सुना दी।
18 सितम्बर, 1857 को संपूर्ण जबलपुर नगर तथा आस-पास के ग्रामीणों के सामने दो तोपों के मुंह पर राजा शंकर शाह और उनके 32 वर्षीय पुत्र रघुनाथ शाह को बांधकर उड़ा दिया गया। जिस स्थान पर ये वीर पिता-पुत्र बलिदान हुए थे, वहां आज एक स्मारक है, जहां खड़ी दो तोपें क्रूर अंग्रेजों की भीरुता की कथा कहती प्रतीत होती हैं।
पर यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया,और आज़ादी की भावना बनकर यहां के लोगों की रग-रग में समा गया ।

      “वंदन इस बलिदान का,जिसमें था आवेग ।
      जो हमको देकर गया,आज़ादी का नेग।।
— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com