लघुकथा

उधार

शकुन्तला ने बहू सुमति को आदेश दिया — बहू तैयार हो जाना। तुम्हारी ननद गरिमा के बेटे का पहला जन्मदिन है। सबको चलना होगा। सुमति साधारण साड़ी में आईं तो एक प्रश्न कि गहने जेवर क्यों नहीं  ?  एक उत्तर कि गहने नहीं हैं। फिर प्रश्न कि गहने कहाँ गए  ? शालीनता से सुमति का उत्तर कि आप के सुपुत्र की शिक्षा का उधार मैनें चुका दिया है। शकुन्तला आश्चर्यचकित। बहू का स्पष्टीकरण कि आप के श्रवण कुमार को लिए तो सरल सीधे जयेश अन्कल से दस साल पहले लिए उधार चुकाने की अपेक्षा विवाह पार्टी कार हिल स्टेशन आवश्यक था। एक सरल देवता ही नहीं ईश्वर समान इनसान से सम्पर्क कर मैनें ससुराल के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किया है। अन्कल बहुत नाराज हुए एवं उन्होने एक रुपया मिला कर मेरी बेटी के नाम शगुन के आशीर्वाद स्वरूप फिक्स डिपाजिट करवा दिया है। सुमति अपनी भीगी पलकें पोछ रही थी एवं शकुन्तला का सिर शर्म से झुका हुआ था।

— दिलीप भाटिया 

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी