कविता

मेरा गाँव

कभी बड़ा खूबसूरत था मेरा गाँव
मिलती थी बरगद वाली ठण्डी छाँव
शहरों ने सीमा जब से तोड़ी
गाँव की पगड़ंडियां हुई चौड़ी
लग गई हवा शहर की गाँव को,
तो हर चीज का होने लगा मोलभाव
हृदय बने मशीनी दया रही न तनिक
ऑनलाइन रिस्तों में मिली न महक
हरे – भरे खेत सब हो गये बंजर
कैसा चला गाँव पर शहरी खंजर
सर्वत्र खड़ा कचरे का पहाड़ मिले
धरती के ऑचल में विनाश पले
कभी बड़ा खूबसूरत था मेरा गाँव
अब पहले जैसा नहीं रहा मेरा गाँव
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111