लेख

तो भला ऐसा कौन करेगा!

सोंचने वाली बात यह है कि जब देश के प्रधानमंत्री धारा 370 और 35ए को हटा सकते हैं तो देश में लगे आरक्षण को हटाने में क्यों हिचकिचा रहें हैं, देश की प्रगति का पथ रोकने में आरक्षण का सबसे अहम योग दान है इसी आरक्षण के कारण अपने सैकडों भारतीय विदेशों में आपने ज्ञान और प्रयोग का परचम लहरा रहें है क्यों ? वो इसलिये कि यहां पर उनके ज्ञान को सही दिशा नही जा सकी! अटल विहार बाजपेई ने यदि डा0 अब्दुल कलाम को देश का राष्ट्रपति न बना दिया होता तो उन दिनों डा0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम को कोई न कोई देश जरूर अपने देश की शोभा बना लेता परन्तु दूरदर्शी नेता अटल विहारी बाजपेई ने अब्दुल कलाम को अपने देश का सम्पूर्ण भार देकर उनको अपने देश में रहने पर विवस कर दिया तब जाकर एक मिशाईल मैन अपने भारत वर्ष का राष्ट्रपति बना और शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में सभी के लिये प्रेरणा भी बने। आज हमारे देश में आरक्षण नामक घुन पूरी तरह से लग चुका है और वह बहुत तेजी से देश को खोखला करने में भी तुला हुआ है, जहां की सरकारें आरक्षण के बल बूते पर बनती हों तो भला वहां की सरकार आरक्षण को क्यों हटायेगी। आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा अपने देश में बनने वाली सरकारें ही उठाती है! क्योंकि सरकार के पास आर्थिक, सामाजिक, जातीय, सभी की गणनाओं की सम्पूर्ण जानकारी होती है किस क्षेत्र में किस जाति का सबसे ज्यादा बोल बाला है, सबसे अधिक किस वर्ग के लोग कहां निवास करते हैं! यह सब की गुणा गणित लगाने के बाद ही बहुलक वर्ग के निवासियों के क्षेत्र की सीट आरक्षित की जाती है, उसके बाद उसकी के अनुसार अपना प्रत्यासी रणभेरी करने के लिये मैदान में उतारती है, समाज में फैली जातिवाद की भावना का सबसे बडा श्रेय सरकार को ही जाता है, क्योंकि वर्तमान समय में सरकार जाति के बल बूते ही अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हो रही है, आप चाहे जितना साक्षर हों आप को क से कनाडा मालूम है फिर आपको क से कबूतर ही कहना पडेगा, यदि आप उनके सुर से सुर नही भी मिलाओगें तो उनका कुछ बिगडने वाला नही है! क्योंकि खनखजूर की एक दो टांगे टूट जाने से खनखजूर लंगडा नही हो जाता है। चुनाव एक ऐसा मंजर होता है जहां पर गैर व्यक्ति भी हर एक उम्मींदवार को भगवान दिखाई देता है, कोई भी हो! कहीं भी हो! चाहे व उच्चवर्ग का हो या निम्न वर्ग का देखते ही तुरन्त शाष्टांग प्राणम होता है और बडी लम्बी चौडी खैर सल्लाह पूंछी जाती है, तरह तरह के उम्मींदवारों में से किसी एक किस्मत बुलंद होती है जो पहले गली गली के लोगों से हाथ जोड़ता है फिर बाद में वह हाथ जुडवाता है। परीक्षा के दिनों में देश की सरकार को अधिक जनसंख्या नही दिखाई पड़ती है ? क्योंकि उन दिनों में वह जनसंख्या उनको एक एक वोट की रूप में नजर आती है और सभी को हर प्रकार की सुविधा और रोजगार देना का एक लम्बा चौंडा भाषण भी देती है ? यहीं से ही सरकार का भाव व दुर्भाव दोनों ही दिखता है! जब तक परिणाम नही आ जाते तब जनता के प्रति एक भाव की बदली छाई रहती है जैसे ही परिणाम पक्ष में आते हैं तब से ही जनता के प्रति दुर्भाव दूर से दिखाई पडने लगता है! तब उनके सम्बोधन में यह सुनने को मिलने लगता है कि आज जो बेरोजगारी, व महंगाई की मार जनता झेल रही है इसका सबसे बडा कारण है अधिक जनसंख्या आज हमारे देश में जनसंख्या इतनी अधिक हो गयी है जिसके कारण समाज के अधिंकाश नौनिहाल कुपोषण के शिकार हो रहे है! अरे एक दम से रेडियों का स्टेशन बदल जाता है! हवा महल, जवानों के लिये का कार्यक्रम सुनने के बजाय इलाकाई खबरे मिलने लगती हैं।

आज का इंसान अपनी वास्तविक जाति को भूला बैठा है! और काल्पनिक जाति के जाल में फंसा हुआ है! वेदों के अनुसार बताये गये चार वर्णों का समर्थन भी नही करना चाह रहा है क्योंकि वर्तमान समय में सभी अपने को ज्ञानी और श्रेष्ठ सझम रहे हैं सभी के पास ज्ञान और ध्यान का विशाल सागर मैजूद है! फिर वह अपनी असली मानव की जाति को मानने के लिये तैयार नही है, मानव के द्वारा बनाई गई काल्पनिक जाति का भक्त बना बैठा है, इसी अटूट भक्ती के कारण ही कहीं कहीं पर बडी शर्मनाक स्थिति का सामना समाज को करना पडता है। यदि लोगों के अन्दर इस ज्ञान का अहसास हो जाये कि जिन लोगों के साथ हम दुर्व्यहार कर रहें हैं वह भी हमारे ही बीच के लोग हैं! बल्कि वह यह सोंचने लगता है कि वे हमारे समुदाय के लोग नही है! इस तोड़ फोड़ का फायदा उठाने के लिये समाज के कुछ लोग आगे निकल कर आ जाते है और वह आग में घी डालना शुरू कर देते हैं! समाज में मैजूद चंद लोग इनकी अज्ञानता का खूब इस्तेमाल भी करते है, और एक दूसरे के प्रति वैमनस्ता का भाव पैदा करनें में रत्ती भर का भी संकोच नही करते है, अपना बर्चस्व स्थापित करने के लिये वह किसी भी हद तक लोगों को बरगलानें में नही चूंकते हैं, कुछ समय बाद ऐसे ही लोग धीरे-धीरे करके नेता बनना शुरू हो जाते है, लोगों को बडे-बडे सपने दिखा कर उनका छोटा सा छोटा दर्द भी नही दूर कर पाते है।

इस भाग दौड भरी जिन्दगी में आरक्षण का कांटा सिर्फ उन्ही को चुभता जो बहुत तेजी से अपने लक्ष्य की ओर दौड़ते हैं उनको विश्वास है कि वह एक ही छलांग में अपनी मंजिल को पा जायेगें देखने वाले भी स्थिति को भांप लेते हैं कि यह सब तो दौड़ने में बहुत माहिर है सारे बंधन तोड़ कर ये सब पार हो जायेगें! भला उनका क्या होगा जो इस भीड़ में बैशाखी लेकर आये हैं! यही सब सोंच विचार करने के बाद उनके राहों में आरक्षण के कांटे विछा दिये जाते हैं जिसके कारण राशी घोंडों की रफ्तार कम हो जाती है! और वह सभी निर्धारित समय में निर्धारित बिन्दु तक नही पहुंच पाते हैं! बस वही पहुंच पाते जिनके पैरों में नाल ठुकी होती है और बिना नाल वाले घोडे़ उछलते जरूर हैं पर वह उत्साह से नही! कांटे के चुभने से, वो दौडे भी, उनको कांटा भी चुभा, फिर मंजिल उनको नही मिली! मंजिल उन्हे मिली जो उकने पीछे रह गये अपनी जगह से चार कदम ही चले वह भी बैशाखी के साहरे! जो देश आरक्षण की बैशाखी से चल रहा हो! जहां के लोग आरक्षण के दम पर चलना सीखते हों! वह देश कब विकसित होगा, विकाशील का चिप्पक उस देश के माथे पर कब तक लगा रहेगा इसकी कोई कल्पना भी नही की जा सकती है। आरक्षण को खतम करनें का मतलब है अपने देशवासियों से बगावत करना, इसकी घोषण मात्र से चक्का जाम जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है,। तो भला ऐसा कौन करेगा!

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782