कविता

पिता का वृहत हस्त

सारा ब्रह्मांड समाया है
पिता श्री के हस्त में
कितना सार अवलंबित है
विधिस्मंत इस तथ्य में।
जिसने भी कहा है
या तो उसने इस
प्रत्यक्ष ज्ञान को जिया
या मात्र बोध प्राप्त करने का
उपाय भर किया।
अन्तःकरण पर स्थापित
चिंतन का अतिरेक
पिता विस्तार है
ब्रह्म का,
समझ गई यह भेद।

पिता श्री मेरे आकाश
जिनमें प्रमुदित हैं
अस्तित्व के राग
और आशाओं के
अलौकिक नाद
उम्मीदों के नभचर
करते कलरव
उनके उत्संग में,
संचित रहते
अनुराग और विराग
उनके अवलंब में।
बहुत दुष्कर होता है
व्यथा के क्षण में
अबद्ध और निरंकुश
जीवन का क्रीडोद्यान
उसी क्षण पिता श्री का
वृहत हस्त बनता
शक्ति का प्रश्वास।

— अनुजीत इकबाल

अनुजीत 'इकबाल'

पता- मकान नम्बर 4, राम रहीम एस्टेट, मलाक रेलवे क्रोसिंग के पास, नीलमथा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश- 226002 मोबाइल नंबर-9919906100 ईमेल पता – anujeet.lko@ gmail.com जॉब- एक्स इंग्लिश लेक्चरर किताबें प्रकाशित- 4 किताबों के नाम- ● Radical English for nurses ● Applied grammar and composition ● The inner shrine { novel} ● Psychology and psychiatry for nurses सम्मान- लखनऊ में 16 वें पुस्तक मेले द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर की अंग्रेजी कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान एवं सम्मान। ● विभिन्न पत्रिकाओं और पोर्टल्स में कविताओं का प्रकाशन शौक- ●अंग्रेजी एवं हिंदी की कविता, कहानियां लिखना। ● ऐक्रेलिक पेंटिंग बनाना (अध्यात्म पर) ● शास्त्रीय संगीत सुनना